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हमूँ-आश-दर-कासा
रुक : हमाँ आश दर कासा , उस वक़्त मुस्तामल है जब पहली हालत में बावजूद कोशिश कुछ तबदीली ना हो
यक-दाना मोहब्बत अस्त व बाक़ी हमा गाह
एक दाना प्यार है और शेष सब घास है, विश्व में प्रेम ही एक वास्तविक चीज़ है शेष सब व्यर्थ है
हमा बाज़ी हमा बाज़ी , पीरों से भी दग़ा बाज़ी
और लोगों से तो चालाकी करते हो क्या उसतादों से भी दग़ा बाज़ी करोगे उस्ताद के सामने शागिर्द की चालाकी नहीं चलती
ख़स अगर बर आसमाँ रवद हमा ख़स अस्त व गौहर अगर दर ख़लाब उफ़्तद हमाँ नफ़ीस
तिनका अगर आसमान पर चला जाए तो भी तिनका है और मोती अगर कीचड़ में गिर पड़े तो भी नफ़ीस है, बुरी चीज़ बुरी है अच्छी चीज़ अच्छी, कमीना आदमी कितना ही बढ़ जाए कमीना ही है और शरीफ़ आदमी कितना ही तबाह हो जाए तब भी उसकी शराफ़त में फ़र्क़ न आएगा
हमा बाज़ी शुमा बाज़ी, पीरों से भी दग़ा बाज़ी
और लोगों से तो चालाकी करते हो क्या उसतादों से भी दग़ा बाज़ी करोगे, उस्ताद के सामने शागिर्द की चालाकी नहीं चलती
हमा बाज़ी शुमा बाज़ी, पीरों से भी दग़ा बाज़ी
सब से तो दग़ा करते हो पैरों से भी चाल चलने लगे, उस्ताद के आगे शागिर्द की नहीं चलती
हमा रा 'ऐब तू पोशी हमा रा 'ऐब तू दानी
(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर ऐब या बुराई का छिपाने वाला और हर ऐब या बुराई का जानने वाला तो (ख़ुदावंद ताला) ही है
दिल हमा दाग़ दाग़ शुद पुंबा कुजा कुजा निहुम
जब किसी काम में इतनी ख़राबियाँ आ पड़ें कि उनका ठीक करना संभव से बाहर हो जाए तो यह कहते हैं
मर्ज़ी मौला अज़ हमा औला
हर मुआमले में ख़ुदा की रज़ा पर राज़ी रहना चाहिए, मालिक की रज़ा सब से बेहतर है (किसी मुआमले में इंसान की बेबसी के मौक़ा पर मुस्तामल)
हमा ब-राह-ए-रास्त अंद
(लफ़ज़न) हर चीज़ अपने रास्ते पर है , (तसव्वुफ़) ये नज़रिया कि हर शैय अपने मुक़र्ररा रास्ते पर चल रही है यानी अल्लाह ताला की रज़ा और तक़दीर के मुताबिक़ हर काम हो रहा है और कुफ्र और इस्लाम पर भी हर शख़्स अल्लाह ताला के हुक्म के मुताबिक़ चल रहा है
स'आदत-ए-हुमा
good fortune because of Huma-name of a fabulous bird commonly regarded in the East as a bird of happy omen, if it's wing overshadows someones's head he will in time wear a crown)
ecce homo
आर्ट: निशात सानिया के दौर की नक़्क़ाशी में हज़रत ईसाईऑ के आख़िरी मसाइब से ताल्लुक़ रखने वाले सिलसिले का कोई मौज़ू , खासतौर पर उन्हें कांटों का ताज पहने हुए दिखाना।
क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा कब चुग़द को पहचानता है
विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता
क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा को कब चुग़द पहचानता है
विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता
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