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किसी की धूल उड़ा देना
मिस्मार और बर्बाद कर देना, ख़ाक में मिला देना, मलियामेट कर देना, गर्द बार कर देना
सिवय्याँ बिन 'ईद कैसी
ख़ुशी ही की तक़रीब में ख़ुशी अच्छी मालूम होती है, ख़ुशी की तक़रीब बगै़र पकवान के फीकी मालूम होती है
किसी से साई कसी को बधाई
उस व्यक्ति के बारे में बात करते हैं जो प्रतिज्ञा तोड़ता है और झूठ बोल कर काम किसी और के लिए करता है
लड़की तेरा ब्याह कर दें, कहा मैं कैसे कहूँ
जहाँ किसी चीज़ की इच्छा हो परंतु कह न सकें वहाँ बोलते हैं
ज़मीन पर किसी के नाम की शराब छिड़कना
मै नोशों में ये दस्तूर है कि पीने से पहले किसी का नाम लेकर एक आध छींटा शराब का ज़मीन पर गिरा देते हैं
हमाँ आश-दर-कासा शुद
(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) एक मुआमले का दूसरी बार पेश आना , मुआमला जूं का तूं रहे तो कहते हैं
बाँस चढ़ी तो अब घूँगट कैसा
अपनी बेपर्दगी पर घूंघट या इज़्ज़त को कहाँ तक सँभालेगा, बेपर्दा होने पर घूंगट और इज़्ज़त क़ायम नहीं रह सकती
ख़सम जोरू की लड़ाई किसी को न भाई
पति-पत्नी को मिलजुल कर रहना चाहिए, पति-पत्नी की लड़ाई सबको नापसंद है
कौन किसी के आवे जावे दाना-पानी लावे
अतिथि भाग्य से आता है, जहाँ का दाना-पानी लिखा होता है वहीं जाता है
दाना न खाए , न पानी पीवे , वो आदमी कैसे जीवे
जो खाए पीए नहीं वो कैसे ज़िंदा रह सकता है, जो रंज-ओ-ग़म की वजह से खाना पीना छोड़ दे ऐसे शख़्स को कहते हैं
दीमक के खाए पेड़, सोच के मारे देह किसी काम के नहीं रहते
दीमक का खाया दरख़्त और फ़िक्र का मारा हुआ बदन बे कार होते हैं
क़ज़िय्या-ए-मुन'अकिसा
प्रत्युत मुक़दमा, उलटा मुक़दमा, वह मुक़दमा जो प्रतिवादी के विरुद्ध हो, तर्कशास्त्र में प्रथम को द्वितीय और द्वितीय को प्रथम प्रतिवादी इस तरह करना कि अस्ली स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता एवं स्त्यता निरंतर बनी रहे न कि अस्ली पूर्ण या आंशिक असत्य बने रहें
नटनी बाँस चढ़ी तो अब घूँगट कैसा
अपनी बेपर्दगी पर घूंघट या इज़्ज़त को कहाँ तक सँभालेगा, बेपर्दा होने पर घूंगट और इज़्ज़त क़ायम नहीं रह सकती
किसी के टुकड़ों पर पलना
बिना अधिकार के दूसरों की रोटियाँ खाना, ग़रीबी के कारण दूसरे की रोटियाँ खाना, दूसरे के घर खाना
किसी की आग में पड़ना
दूसरे शख़्स की मुसीबत अपने सर लेना और किसी मुसीबत में शरीक होना, हमदर्दी करना, दूसरे की मुसीबत में साथ देना
काैवे कोसा करें खेत पक्का करें
۔मिसल। जब कोई शख़्स किसी को नाहक़ बददुआ दे इस महल पर बोलते हैं यानी नाहक़ की बददुआ का कुछ असर नहीं
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