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या शाफ़ी या काफ़ी
एक शब्द जो औषधि के प्रयोग करते समय रोगग्रस्त अवस्था में कहा जाता है, ऐ मरहम लगाने वाले यानी अल्लाह ताला
ठोकर या ना'ल
باڑ دار نعل ، وہ نعل جس کے بیچ کے حصے پر چھوٹی سی اُبھری ہوئی کور یا کگر بنی ہوئی ہو جو سُم پر باہر کے رخ سے صحیح بیٹھ جائے .
या क़िस्मत या नसीब
जिस वक़्त तक़दीर की शिकायत करते हैं तो उस वक़्त भी उसे मुख़ातब बनाकर ये कलिमा ज़बान पर लाते हैं
या तख़्त या तख़्ता
या कामियाब होंगे या मर जायेंगे, या राज्य के सिंहासन पर बैठेंगे या ताबूत पर लेट जायेंगे
या इमाम , या हुसैन
जिस वक़्त ताज़िया लेकर चलते हैं तो ये कलिमा ज़बान पर लाते हैं जिस से मुराद ये होती है कि ए हमारे इमाम और ए हमारे हसीनओ ये तेरे नाम की यादगार है
या हय्यु या क़य्यूम
ए ज़िंदा रहने वाले, ए क़ायम रहने वाले , मुराद: ए अल्लाह ताला, मुश्किल घड़ी से नजात पाने के लिए बतौर-ए-वरद मुस्तामल
या रिंदे या फ़तह चंदे
या तो बिलकुल निर्धन होना चाहिए या बहुत अमीर, मध्यवर्गीय व्याक्ति परेशान रहता है
या हादी
(प्रार्थनात्मक वाक्यांश) ऐ मार्गदर्शन करने वाले, ऐ दिशा देने वाले; अर्थात: हे अल्लाह (जप के रूप में प्रयुक्त)
या वहशत
अत्यधिक घबराहट और चिंता की स्थिती में कहते हैं, उस वक़्त भी कहते हैं जब कोई व्यक्ति बकवास या बेतुका काम करे
'इश्क़ या करे अमीर या करे फ़क़ीर
'इश्क़ हर एक के बस का नहीं है, अमीर अथवा फ़क़ीर ही इस को निभा सकते हैं क्यूँकि दोनों को कोई चिंता नहीं होती
या वदूद
वह जो सभी प्राणियों पर कृपा करता है और उनकी भलाई चाहता है, वह दयालु, अच्छाई चाहने वाला, प्रेम करने वाला, वह शफ़ीक़; मुश्किल में ईश्वर को पुकारने के लिए प्रयुक्त
या ग़फ़ूर
ए गुनाहों के बख़शने वाले, ए मग़फ़िरत फ़रमाने वाले ख़ुदा, गुनाहों से माफ़ी चाहने के लिए ये कलिमा ज़बान पर लाते हैं
या क़िस्मत
जिस वक़्त तक़दीर की शिकायत करते हैं तो उस वक़्त भी उसे मुख़ातब बना कर ये कलिमा ज़बान पर लाते हैं जिस से ये ग़रज़ होती है कि ए तक़दीर तुझे हमारे साथ यही सुलूक करना था, हाय बदक़िस्मती, हाय बदनसीबी
या खाए घोड़ा या खाए रोड़ा
घोड़े और घर पर बहुत ख़र्च होता है अर्थात घोड़ा रखने या मकान बनवाने में बेशुमार ख़र्च होता है
या बसे गूजर या रहे ऊजड़
ऐसे मौके़ पर बोलने लगे कि हम अपने सिवा किसी को नहीं बसने देंगे यानी या तो हमें रहे वर्ना दूसरे को भी रहना नसीब नहीं होसकता, यानी अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे, जब कोई शख़्स अपनी ही आबादी चाहे और दूसरे की आबादी ना देख सके, इस बस्ती में या गुजर बसेंगे या उजड़ी रहेगी, हम अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे
या उस्ताद
हे गुरु, अर्थात हे गुरु मदद, जब कोई प्रतिभाशाली या कला में पारंगत व्यक्ति कोई काम शुरू करता है तो आशीष के लिए सबसे पहले अपने मुंह से हे गुरु कहता है ताकि काम में कोई कमी न रह जाये और वह काम अच्छे से हो जाए
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