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हमाँ आश-दर-कासा
(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रचलित) एक घटना का दूसरी बार घटित होना, मुआमला जैसे का तैसे रहे तो कहते हैं
हमाँ-यक-तेशा-आख़िर-बजा-ज़द
(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) वही एक तेशा निशाने पर लगा, वही एक पिछली तदबीर ठीक बैठी या काम आई
पेश-दाँ-दर-अमाँ
किसी बात का पहले से ज्ञान हो तो उसकी अच्छाई-बुराई से मुक्ति की युक्ति हो जाती है (विशेषतः किसी परेशानी से अवगत होने की सूरत में)
हमाँ आश-दर-कासा शुद
(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) एक मुआमले का दूसरी बार पेश आना , मुआमला जूं का तूं रहे तो कहते हैं
चोर की अम्माँ घुटनों में सर डाल के रोए
अपनों की बुरी बात ज़ाहिर नहीं की जाती और जी ही जी में कुढ़ना पड़ता है इस की बरी हरकतें किसी से कह भी नहीं सकते
चोर की अम्माँ घुटनों में सर दे और रोए
अपनों की बुरी बात ज़ाहिर नहीं की जाती और जी ही जी में कुढ़ना पड़ता है इस की बरी हरकतें किसी से कह भी नहीं सकते
ख़स अगर बर आसमाँ रवद हमा ख़स अस्त व गौहर अगर दर ख़लाब उफ़्तद हमाँ नफ़ीस
तिनका अगर आसमान पर चला जाए तो भी तिनका है और मोती अगर कीचड़ में गिर पड़े तो भी नफ़ीस है, बुरी चीज़ बुरी है अच्छी चीज़ अच्छी, कमीना आदमी कितना ही बढ़ जाए कमीना ही है और शरीफ़ आदमी कितना ही तबाह हो जाए तब भी उसकी शराफ़त में फ़र्क़ न आएगा
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