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झोंपड़ी

छोटा झोंपड़ा, छपरा, छोटा सा छप्पर, छपरिया

झोंपड़ी छाना

घास-फूस का घर बनाना, झोपड़ी बनाना

झोंपड़ी में रहे, महलों का ख़्वाब देखे

असमर्थता में सामर्थ वालों की सी रेस करना, निर्धनता में अमीरी की चेष्टा

झोंपड़ी में महलों के ख़्वाब देखना

रुक : झून में रहना और महलों के ख़ाब देखना

झोंपड़िया

झोंपड़ी

गुज़र गई गुज़रान, क्या झोंपड़ी क्या मकान

जब ज़िंदगी गुज़र गई तो ये सोचना हमाक़त है कि अच्छी गुज़री या बुरी, जब उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़र चुका है तो अच्छा बुरा बराबर है

लात मारी झोंपड़ी चूल्हे मियाँ सलाम

इधर-उधर मारा-मारा फिरनेवालों के मुताल्लिक़ कहते हैं, जिनका घरबार नहीं होता

गुज़र गई गुज़रान, क्या झोंपड़ी क्या मैदान

जब ज़िंदगी गुज़र गई तो ये सोचना हमाक़त है कि अच्छी गुज़री या बुरी, जब उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़र चुका है तो अच्छा बुरा बराबर है

देख बिगानी झोंपड़ी मत तरसावे जी, रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी

रुक : देख बग्गानी चमड़ी मत अलख

आग लगती झोंपड़ी जो निकले सो लाभ

सर्वस्व नष्ट होने में से जो कुछ बच सके, उसे ही लाभ समझना चाहिए, हानि से जो बच जाए अच्छा है

आग लगंती झोंपड़ी जो निकले सो लाभ

हानि सूनिश्चित हो जाने की स्थिति में जो भी बच जाये या जो भी लाभ हो जाए लाभ ही है

आग लगती झोंपड़ी जो निकले सो लाओ

सर्वस्व नष्ट होने में से जो कुछ बच सके, उसे ही लाभ समझना चाहिए, हानि से जो बच जाए अच्छा है

आग लगंती झोंपड़ी जो निकले सो लाव

हानि सूनिश्चित हो जाने की स्थिति में जो भी बच जाये या जो भी लाभ हो जाए लाभ ही है

चूतड़ को लगी धूपड़ी , बला छावे झोंपड़ी

जो लोग सामयिक आवश्यकता समाप्त हो जाने पर भविष्य में ऐसे अवसर के लिए चिंता एवं प्रबंध नहीं करते, उनके लिए यह कहावत कहते हैं

देख बेगानी झोपड़ी मत तरसाओ जी, रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी

यह कहावत लालची आदमी के प्रति कहते हैं

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झोंपड़ी

छोटा झोंपड़ा, छपरा, छोटा सा छप्पर, छपरिया

झोंपड़ी छाना

घास-फूस का घर बनाना, झोपड़ी बनाना

झोंपड़ी में रहे, महलों का ख़्वाब देखे

असमर्थता में सामर्थ वालों की सी रेस करना, निर्धनता में अमीरी की चेष्टा

झोंपड़ी में महलों के ख़्वाब देखना

रुक : झून में रहना और महलों के ख़ाब देखना

झोंपड़िया

झोंपड़ी

गुज़र गई गुज़रान, क्या झोंपड़ी क्या मकान

जब ज़िंदगी गुज़र गई तो ये सोचना हमाक़त है कि अच्छी गुज़री या बुरी, जब उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़र चुका है तो अच्छा बुरा बराबर है

लात मारी झोंपड़ी चूल्हे मियाँ सलाम

इधर-उधर मारा-मारा फिरनेवालों के मुताल्लिक़ कहते हैं, जिनका घरबार नहीं होता

गुज़र गई गुज़रान, क्या झोंपड़ी क्या मैदान

जब ज़िंदगी गुज़र गई तो ये सोचना हमाक़त है कि अच्छी गुज़री या बुरी, जब उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़र चुका है तो अच्छा बुरा बराबर है

देख बिगानी झोंपड़ी मत तरसावे जी, रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी

रुक : देख बग्गानी चमड़ी मत अलख

आग लगती झोंपड़ी जो निकले सो लाभ

सर्वस्व नष्ट होने में से जो कुछ बच सके, उसे ही लाभ समझना चाहिए, हानि से जो बच जाए अच्छा है

आग लगंती झोंपड़ी जो निकले सो लाभ

हानि सूनिश्चित हो जाने की स्थिति में जो भी बच जाये या जो भी लाभ हो जाए लाभ ही है

आग लगती झोंपड़ी जो निकले सो लाओ

सर्वस्व नष्ट होने में से जो कुछ बच सके, उसे ही लाभ समझना चाहिए, हानि से जो बच जाए अच्छा है

आग लगंती झोंपड़ी जो निकले सो लाव

हानि सूनिश्चित हो जाने की स्थिति में जो भी बच जाये या जो भी लाभ हो जाए लाभ ही है

चूतड़ को लगी धूपड़ी , बला छावे झोंपड़ी

जो लोग सामयिक आवश्यकता समाप्त हो जाने पर भविष्य में ऐसे अवसर के लिए चिंता एवं प्रबंध नहीं करते, उनके लिए यह कहावत कहते हैं

देख बेगानी झोपड़ी मत तरसाओ जी, रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी

यह कहावत लालची आदमी के प्रति कहते हैं

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