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दिए तले अंधेरा

आँख पर लापरवाही का पर्दा, धनसंपन्नता के साये तले निर्धनता, ज्ञान के साये में अज्ञानता

लिए दिए

لین دَین .

हाथ कटा दिए

۔ تحریردے کر مجبور ہونے کی جگہ۔؎

लिए दिए रहना

ख़ुद्दार और ग़ी्योर होना, रख-रखाव के साथ रहना, इजतिनाब बरतना, ख़ुद्दारी करना

लिए दिए होना

ख़ुद्दारी दिखाना, अलग-थलग रहना

लिए दिये

لین دَین .

लिए दिये रहना

ख़ुद्दार और ग़ी्योर होना, रख-रखाव के साथ रहना, इजतिनाब बरतना, ख़ुद्दारी करना

लिए दिये होना

ख़ुद्दारी दिखाना, अलग-थलग रहना

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय

बूढ़े आदमी को कोई अपने पास नहीं रखना चाहता

हाथ पत्थर तले दिये हैं

मजबूरी है, लाचार हैं, ख़ुद मुश्किल में फंसे हैं

पत्तल फाड़ी और चल दिए

मतलब निकाला और चल दिए मतलबी के बारे में कहते हैं

दिन दिये

دن میں ، دن کی روشنی میں ، صبح ہوتے ہی .

गुड़ दिए मरे तो ज़हर क्यूँ दीजे

जो काम नरमी से निकले तो उस में सख़्ती क्यूँ की जाये अथवा मिठास से काम चल जाए तो सख़्ती क्यूँ की जाए

तीन दिये तेरह पाए, कैसे लोभ ब्याज का जाए

सूद ख़ोरों पर व्यंग है कि तीन दे के तेरह वसूल करते हैं

तीन दिये तेरह पाए, कैसे बोझ ब्याज का जाए

सूद ख़ोरों पर व्यंग है कि तीन दे के तेरह वसूल करते हैं

बे-लिए-दिए

बिना ख़र्च किए, बगै़र घूस दिए

अपने तईं लिए दिए रहना

सतर्क रहना, होशियार और सावधान रहना, अपने लाभ की इच्छा रखना, स्वार्थपरता रखना

जो गुड़ दिए से मरे उसे ज़हर क्यूँ दे

जो काम नरमी से निकले तो उस में सख़्ती क्यूँ की जाये अथवा मिठास से काम चल जाए तो सख़्ती क्यूँ की जाए

दीवाली के दिए चाटकर जाएँगे

सत्यानास कर के छोड़ेंगे

कुछ दिए कुछ दिलाए कुछ का देना ही क्या

टाल मटोल करने वाले आदमी की निसबत कहते हैं

घी के दिये

(رک) گھی کے چراغ .

शम' की रौशनी जलते तलक, और दिए की रौशनी महशर तलक

शम्मा की रोशनी जलते तक है और दिए (ख़ैरात) की रोशनी क़ियामत के दिन भी काम देगी

घी के दिए जलाना

रुक : घी के चिराग़ जलाना, ख़ुशी मनाना, जश्न मनाना

बाग़ लगा नहीं मंगतों ने डेरे डाल दिये

वस्तु तैयार होई नहीं माँगने वाले पहले से आ अरस्थित हुए

साबुन दिए मैल कटे और गंगा नहाए पाप, झूट बराबर पाप नहीं और साँच बराबर ताप

हिंदूओं की आस्था में गंगा के नहाने से गुनाह माफ़ होते हैं, झूठ सब से बड़ा गुनाह है और सच्च के बराबर कोई 'इबादत एवं तपस्या नहीं

शाह ख़ानम की आँखें दुखती हैं, शहर के चराग़ दीए गुल कर दो

ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और मुतकब्बिर हैं कि अपनी तकलीफ़ के साथ औरों को भी तकलीफ़ देने से परहेज़ नहीं करतीं, अपनी तकलीफ़ और मुसीबत में औरों को मुबतला करना

बिरादरी को न खिलाया, चार काँधी ही जमा दिये

कंजूस के अत्याचार एवं अनीति को दर्शाने के लिए कहा जाता है

गुड़ दिए मरे तो ज़हर क्यों दीजिए

जो काम आसानी और नरमी से निकल सकता है इस की सख़्ती नहीं करना चाहिए

आँख नाक मुख मूँद के नाम निरंजन लेय, भीतर के पट जब खुलें जब बाहर के पट देय

एकाग्रचित होकर जो निरंजन अर्थात कल्मष-शून्य भगवान है उसका ध्यान करना चाहिए

रस दिए मरे तो बिस क्यों दीजे

जो काम नरमी से हो सकता है इस में सख़्ती नहीं करनी चाहिए

तुम्हारे वास्ते तो कुँवों में बाँस डाल दिए

तुम को बहुत ढोन गया

ऐसे पर तो ऐसे काजल दिए पर कैसे

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पर तो ऐसी काजल दिए पर कैसी

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पै तो ऐसी काजल दिए पै कैसी

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पर तो ऐसा काजल दिए पर कैसा

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

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दिए तले अंधेरा

आँख पर लापरवाही का पर्दा, धनसंपन्नता के साये तले निर्धनता, ज्ञान के साये में अज्ञानता

लिए दिए

لین دَین .

हाथ कटा दिए

۔ تحریردے کر مجبور ہونے کی جگہ۔؎

लिए दिए रहना

ख़ुद्दार और ग़ी्योर होना, रख-रखाव के साथ रहना, इजतिनाब बरतना, ख़ुद्दारी करना

लिए दिए होना

ख़ुद्दारी दिखाना, अलग-थलग रहना

लिए दिये

لین دَین .

लिए दिये रहना

ख़ुद्दार और ग़ी्योर होना, रख-रखाव के साथ रहना, इजतिनाब बरतना, ख़ुद्दारी करना

लिए दिये होना

ख़ुद्दारी दिखाना, अलग-थलग रहना

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय

बूढ़े आदमी को कोई अपने पास नहीं रखना चाहता

हाथ पत्थर तले दिये हैं

मजबूरी है, लाचार हैं, ख़ुद मुश्किल में फंसे हैं

पत्तल फाड़ी और चल दिए

मतलब निकाला और चल दिए मतलबी के बारे में कहते हैं

दिन दिये

دن میں ، دن کی روشنی میں ، صبح ہوتے ہی .

गुड़ दिए मरे तो ज़हर क्यूँ दीजे

जो काम नरमी से निकले तो उस में सख़्ती क्यूँ की जाये अथवा मिठास से काम चल जाए तो सख़्ती क्यूँ की जाए

तीन दिये तेरह पाए, कैसे लोभ ब्याज का जाए

सूद ख़ोरों पर व्यंग है कि तीन दे के तेरह वसूल करते हैं

तीन दिये तेरह पाए, कैसे बोझ ब्याज का जाए

सूद ख़ोरों पर व्यंग है कि तीन दे के तेरह वसूल करते हैं

बे-लिए-दिए

बिना ख़र्च किए, बगै़र घूस दिए

अपने तईं लिए दिए रहना

सतर्क रहना, होशियार और सावधान रहना, अपने लाभ की इच्छा रखना, स्वार्थपरता रखना

जो गुड़ दिए से मरे उसे ज़हर क्यूँ दे

जो काम नरमी से निकले तो उस में सख़्ती क्यूँ की जाये अथवा मिठास से काम चल जाए तो सख़्ती क्यूँ की जाए

दीवाली के दिए चाटकर जाएँगे

सत्यानास कर के छोड़ेंगे

कुछ दिए कुछ दिलाए कुछ का देना ही क्या

टाल मटोल करने वाले आदमी की निसबत कहते हैं

घी के दिये

(رک) گھی کے چراغ .

शम' की रौशनी जलते तलक, और दिए की रौशनी महशर तलक

शम्मा की रोशनी जलते तक है और दिए (ख़ैरात) की रोशनी क़ियामत के दिन भी काम देगी

घी के दिए जलाना

रुक : घी के चिराग़ जलाना, ख़ुशी मनाना, जश्न मनाना

बाग़ लगा नहीं मंगतों ने डेरे डाल दिये

वस्तु तैयार होई नहीं माँगने वाले पहले से आ अरस्थित हुए

साबुन दिए मैल कटे और गंगा नहाए पाप, झूट बराबर पाप नहीं और साँच बराबर ताप

हिंदूओं की आस्था में गंगा के नहाने से गुनाह माफ़ होते हैं, झूठ सब से बड़ा गुनाह है और सच्च के बराबर कोई 'इबादत एवं तपस्या नहीं

शाह ख़ानम की आँखें दुखती हैं, शहर के चराग़ दीए गुल कर दो

ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और मुतकब्बिर हैं कि अपनी तकलीफ़ के साथ औरों को भी तकलीफ़ देने से परहेज़ नहीं करतीं, अपनी तकलीफ़ और मुसीबत में औरों को मुबतला करना

बिरादरी को न खिलाया, चार काँधी ही जमा दिये

कंजूस के अत्याचार एवं अनीति को दर्शाने के लिए कहा जाता है

गुड़ दिए मरे तो ज़हर क्यों दीजिए

जो काम आसानी और नरमी से निकल सकता है इस की सख़्ती नहीं करना चाहिए

आँख नाक मुख मूँद के नाम निरंजन लेय, भीतर के पट जब खुलें जब बाहर के पट देय

एकाग्रचित होकर जो निरंजन अर्थात कल्मष-शून्य भगवान है उसका ध्यान करना चाहिए

रस दिए मरे तो बिस क्यों दीजे

जो काम नरमी से हो सकता है इस में सख़्ती नहीं करनी चाहिए

तुम्हारे वास्ते तो कुँवों में बाँस डाल दिए

तुम को बहुत ढोन गया

ऐसे पर तो ऐसे काजल दिए पर कैसे

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पर तो ऐसी काजल दिए पर कैसी

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पै तो ऐसी काजल दिए पै कैसी

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

ऐसे पर तो ऐसा काजल दिए पर कैसा

बिना बनाव श्रंगार के तो ये 'आलम है अगर बनाव श्रंगार हो तो क्या ग़ज़ब ढाए

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