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ब-क़द्र-ए-वुस'अत

जितना सामर्थ्य हो उतना, जितनी समाई हो उतनी

ब-क़द्र-ए-'उम्र

in proportion to one's age, life

ब-क़द्र-ए-हौसला

जितना साहस हो उतना

ब-क़द्र-ए-'इश्क़

प्यार की मात्रा में, प्यार की हद तक, प्रेम के बराबर

ब-ए-क़द्र-ए-ज़र्फ़

जितना बर्तन हो उतना, जितनी योग्यता हो उतनी, जितना सामर्थ्य हो उतना।।

ब-क़द्र-ए-शौक़

जितनी अभिलाषा हो उतनी

ब-क़द्र-ए-हैसियत

जितना सामर्थ्य हो उतना, जितना धन हो उतना

ब-क़द्र-ए-हौसला

जितना साहस हो उतना

ब-क़द्र-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार

पीड़ा की लालसा-तुल्य

ब-क़द्र-ए-'अता-ए-यार

to the level of the reward of beloved

अयाज़ क़द्र-ए-ख़ुद ब-शनास

इसका तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अपने सामर्थ्य एवं पदवी से अधिक ऊँचे स्वर में बोलता है या अपने चरित्र और पदवी से बढ़कर काम करता है

रोज़ी ब-क़द्र-ए-हिम्मत हर कस मुक़र्रर अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर शख़्स की रोज़ी उस की हिम्मत के मुवाफ़िक़ मुक़र्रर है यानी जितनी हिम्मत जो शख़्स करेगा उतनी ही रोज़ी उसे मिलेगी

क़द्र-ए-ईं बादा नदानी ब-ख़ुदा ता न चशी

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) ख़ुदा की क़सम जब तक इस शराब को ना चखेगा उस की क़दर ना जानेगा, जब तक ख़ुद तजुर्बा ना क्यू जाये असल कैफ़ीयत मालूम नहीं होसकती

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ब-क़द्र-ए-वुस'अत

जितना सामर्थ्य हो उतना, जितनी समाई हो उतनी

ब-क़द्र-ए-'उम्र

in proportion to one's age, life

ब-क़द्र-ए-हौसला

जितना साहस हो उतना

ब-क़द्र-ए-'इश्क़

प्यार की मात्रा में, प्यार की हद तक, प्रेम के बराबर

ब-ए-क़द्र-ए-ज़र्फ़

जितना बर्तन हो उतना, जितनी योग्यता हो उतनी, जितना सामर्थ्य हो उतना।।

ब-क़द्र-ए-शौक़

जितनी अभिलाषा हो उतनी

ब-क़द्र-ए-हैसियत

जितना सामर्थ्य हो उतना, जितना धन हो उतना

ब-क़द्र-ए-हौसला

जितना साहस हो उतना

ब-क़द्र-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार

पीड़ा की लालसा-तुल्य

ब-क़द्र-ए-'अता-ए-यार

to the level of the reward of beloved

अयाज़ क़द्र-ए-ख़ुद ब-शनास

इसका तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अपने सामर्थ्य एवं पदवी से अधिक ऊँचे स्वर में बोलता है या अपने चरित्र और पदवी से बढ़कर काम करता है

रोज़ी ब-क़द्र-ए-हिम्मत हर कस मुक़र्रर अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर शख़्स की रोज़ी उस की हिम्मत के मुवाफ़िक़ मुक़र्रर है यानी जितनी हिम्मत जो शख़्स करेगा उतनी ही रोज़ी उसे मिलेगी

क़द्र-ए-ईं बादा नदानी ब-ख़ुदा ता न चशी

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) ख़ुदा की क़सम जब तक इस शराब को ना चखेगा उस की क़दर ना जानेगा, जब तक ख़ुद तजुर्बा ना क्यू जाये असल कैफ़ीयत मालूम नहीं होसकती

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