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दिन आवें खोटे तो मित्र लूटे
बुरे वक़्त में दोस्त भी दुश्मन हो जाते हैं, मुसीबत के दोनों का कोई साथी नहीं
जोगी किस के मित्र और पातुर किस की नार
यानी ये (दोनों) किसी के वफ़ादार नहीं होते, आज़ाद की दोस्ती का क्या भरोसा, जोगी दोस्त नहीं बिन सकते और फ़ाहिशा औरत बीवी नहीं बिन सकती
तुलसी ऐसे मित्र के कोट फाँद के जाए, आवत ही तो हंस मिले और चलत रहे मुरझाए
पहले मित्र को बड़ी रूचि से मिलना चाहिए जो हंसता हुआ मिले और जाता हुआ दुखी हो
आग लगे कर बैरी , दर्शन मित्र देख भरे सब तन मन
परेशानी में पड़े पर शत्रु प्रसन्न होते हैं और दोस्तों को दुख एवं पछतावा होता है
गुर से लपट मित्र से चोरी या हो निर्दमन या हो कोढ़ी
गुरु को जो धोका दे और दोस्त की चोरी करे वो ग़रीब हो जाएगा या कौड़ी
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