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बँधता

बँधा-टिका

सीमित, निश्चित, मुक़र्रर (जिस में वृद्धि या परिवर्तन न हो), नपा तुला

शाबश मुल्ला तेरे ता'वीज़ को बाँधते ही लड़का फुदका

तावीज़ इतना पर तासीर है कि बांधते ही काम होगया , तंज़न भी मुसतामल है यानी बात नहीं बनी

मास सब कोई खाता है हाड़ गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ से सब मुहब्बत करते हैं नालायक़ को कोई नहीं पूछता

भादों की मेंह से दोनों साख की जड़ बंधती है

भादों की वर्षा दोनों फ़सलों के लिये लाभदायक होती है जिस में एक फ़सल पकने के निकट होती है और दूसरी के कटने का समय होता है

मास सब कोई खाता है हड्डी गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ से सब मुहब्बत करते हैं नालायक़ को कोई नहीं पूछता

माँस सब खाते हैं हाड गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ को सब पसंद करते हैं, नालायक़ को कोई भी पसंद नहीं करता

वो कम्बल ही गए जिसमें तिल बँधते थे

अब वह वस्तु ही नहीं जिसके कारण से लोग मुतवज्जा होते थे

वो कमली ही नहीं जिस में तिल बँधते थे

अब वह वस्तु ही नहीं जिसके कारण से लोग मुतवज्जा होते थे

वो कमली ही जाती रही जिसमें तिल बँधते थे

अब वो चीज़ ही नहीं जिस के कारण लोग मुतवज्जा होते थे अर्थात ध्यान देते थे, हुस्न जाता रहा एवं वो ज़माना जाता रहा

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बँधता

बँधा-टिका

सीमित, निश्चित, मुक़र्रर (जिस में वृद्धि या परिवर्तन न हो), नपा तुला

शाबश मुल्ला तेरे ता'वीज़ को बाँधते ही लड़का फुदका

तावीज़ इतना पर तासीर है कि बांधते ही काम होगया , तंज़न भी मुसतामल है यानी बात नहीं बनी

मास सब कोई खाता है हाड़ गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ से सब मुहब्बत करते हैं नालायक़ को कोई नहीं पूछता

भादों की मेंह से दोनों साख की जड़ बंधती है

भादों की वर्षा दोनों फ़सलों के लिये लाभदायक होती है जिस में एक फ़सल पकने के निकट होती है और दूसरी के कटने का समय होता है

मास सब कोई खाता है हड्डी गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ से सब मुहब्बत करते हैं नालायक़ को कोई नहीं पूछता

माँस सब खाते हैं हाड गले में कोई नहीं बाँधता

लायक़ को सब पसंद करते हैं, नालायक़ को कोई भी पसंद नहीं करता

वो कम्बल ही गए जिसमें तिल बँधते थे

अब वह वस्तु ही नहीं जिसके कारण से लोग मुतवज्जा होते थे

वो कमली ही नहीं जिस में तिल बँधते थे

अब वह वस्तु ही नहीं जिसके कारण से लोग मुतवज्जा होते थे

वो कमली ही जाती रही जिसमें तिल बँधते थे

अब वो चीज़ ही नहीं जिस के कारण लोग मुतवज्जा होते थे अर्थात ध्यान देते थे, हुस्न जाता रहा एवं वो ज़माना जाता रहा

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