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ग़र्रा-ए-तक़दीर-ए-सुल्ताँ

राजा का अपने भाग्य पर घमंड करना

गर्द-ए-अना

अहंकार की गर्द, अहंकारी

गर्द-ए-आफ़ताब

सूर्य के प्रकाश में दिखाई देने वाले महीन कण

गर्द उड़ा दी

सब कुछ खो देना, ख़र्च कर डालना

गर्द उड़ना

हवा के ज़ोर में धूल का ज़मीन से ऊपर होना

गर्द उड़ाना

धूल को हवा के ज़ोर से वातावरण में फैला देना, धूल उड़ाना

गर्द उठना

हवा के ज़ोर में धूल-गर्द का भुमि से ऊपर होना

ग़ुरूर आना

अहंकार हो जाना, घमंड करना

गीदड़ औरों को शुगून बताए आप अपनी गर्दन कुत्तों से तुड़वाए

अपनी मुसीबत की फ़िक्र नहीं औरों को तदबीर बताते फिरते हैं, औरों को नसीहत अपने फ़ज़ीहत

गीदड़ औरों को शुगून बताएँ आप अपनी गर्दन कुत्तों से कटवाएँ

अपनी मुसीबत की फ़िक्र नहीं औरों को तदबीर बताते फिरते हैं, औरों को नसीहत अपने फ़ज़ीहत

गीदड़ उछ्ला उछ्ला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अख़ थू

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

गीदड़ उछला उछला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अंगूर खट्टे होते हैं

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

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राजा का अपने भाग्य पर घमंड करना

गर्द-ए-अना

अहंकार की गर्द, अहंकारी

गर्द-ए-आफ़ताब

सूर्य के प्रकाश में दिखाई देने वाले महीन कण

गर्द उड़ा दी

सब कुछ खो देना, ख़र्च कर डालना

गर्द उड़ना

हवा के ज़ोर में धूल का ज़मीन से ऊपर होना

गर्द उड़ाना

धूल को हवा के ज़ोर से वातावरण में फैला देना, धूल उड़ाना

गर्द उठना

हवा के ज़ोर में धूल-गर्द का भुमि से ऊपर होना

ग़ुरूर आना

अहंकार हो जाना, घमंड करना

गीदड़ औरों को शुगून बताए आप अपनी गर्दन कुत्तों से तुड़वाए

अपनी मुसीबत की फ़िक्र नहीं औरों को तदबीर बताते फिरते हैं, औरों को नसीहत अपने फ़ज़ीहत

गीदड़ औरों को शुगून बताएँ आप अपनी गर्दन कुत्तों से कटवाएँ

अपनी मुसीबत की फ़िक्र नहीं औरों को तदबीर बताते फिरते हैं, औरों को नसीहत अपने फ़ज़ीहत

गीदड़ उछ्ला उछ्ला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अख़ थू

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

गीदड़ उछला उछला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अंगूर खट्टे होते हैं

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

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