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कंबल

ऊनी लोई, ऊन से बुनी हुई एक प्रकार की बहुत मोटी चादर, जो प्रायः ओढ़ने-बिछाने के काम आती है

कम्बल होना

कम्बल-पोश

कम्बल ओढ़ने वाले, वो दरवेश जो हमेशा कम्बल ही ओढ़े या पहने रहते हैं, सामग्री, तपस्वी

कम्बल ओढ़ने से फ़क़ीर नहीं होता

यानी भेस के साथ-साथ निजी कमाल भी चाहिए

कमबल ओढ़ना

मोटा झूटा पहन कर गुज़र बसर करना जैसे : खुल खाना कम्बल ओढ़ना, माया का क्या जोड़ना

कम्बल उढ़ाना

जेल दिखाना, जेल भेजना, क़ैद कराना

कम्बली

छोटा कम्बल

कम्बल बन कर चिमट जाना

पीछे पड़ जाना, किसी सूरत ना छोड़ना

पाँड-कम्बल

फ़क़ीर को कम्बल ही दोशाला है

ग़रीब को जो मयस्सर हो जावे वही बहुत है , ग़रीब आदमी को जो कुछ मिल जाये वही बहुत है

बाल का कम्बल बनाना

बात का बतंगड़ बनाना, छोटी सी बात को बहुत बढ़ाना

खर्सा प्यारा बीजना सबाले प्यारी आग, बरखा प्यारी तीन चीज़ कम्बल, छावा, राग

गर्मी में पंखा अच्छा लगता है सर्दी में आग, बारिश में कम्बल, साया और राग

वो कम्बल ही गए जिसमें तिल बँधते थे

अब वो चीज़ ही नहीं जिस की वजह से लोग मुतवज्जा होते थे , हुस्न जाता रहा नीज़ वो ज़माना जाता रहा

माया का क्या जोड़ना, खल खाना, कम्बल ओढ़ना

कंजूस के प्रति कहते हैं जो दुख उठा कर धन जमा' करता है अर्थात ऐसी दौलत जमा' करने का क्या लाभ कि खाने पहनने को भी तरसे

कबीर दास की उल्टी बानी, बरसे कंबल भीजे पानी

उल्टी बात है, जो होना चाहिए वह होता नहीं, होना चाहिए भीजे कंबल बरसे पानी

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कंबल

ऊनी लोई, ऊन से बुनी हुई एक प्रकार की बहुत मोटी चादर, जो प्रायः ओढ़ने-बिछाने के काम आती है

कम्बल होना

कम्बल-पोश

कम्बल ओढ़ने वाले, वो दरवेश जो हमेशा कम्बल ही ओढ़े या पहने रहते हैं, सामग्री, तपस्वी

कम्बल ओढ़ने से फ़क़ीर नहीं होता

यानी भेस के साथ-साथ निजी कमाल भी चाहिए

कमबल ओढ़ना

मोटा झूटा पहन कर गुज़र बसर करना जैसे : खुल खाना कम्बल ओढ़ना, माया का क्या जोड़ना

कम्बल उढ़ाना

जेल दिखाना, जेल भेजना, क़ैद कराना

कम्बली

छोटा कम्बल

कम्बल बन कर चिमट जाना

पीछे पड़ जाना, किसी सूरत ना छोड़ना

पाँड-कम्बल

फ़क़ीर को कम्बल ही दोशाला है

ग़रीब को जो मयस्सर हो जावे वही बहुत है , ग़रीब आदमी को जो कुछ मिल जाये वही बहुत है

बाल का कम्बल बनाना

बात का बतंगड़ बनाना, छोटी सी बात को बहुत बढ़ाना

खर्सा प्यारा बीजना सबाले प्यारी आग, बरखा प्यारी तीन चीज़ कम्बल, छावा, राग

गर्मी में पंखा अच्छा लगता है सर्दी में आग, बारिश में कम्बल, साया और राग

वो कम्बल ही गए जिसमें तिल बँधते थे

अब वो चीज़ ही नहीं जिस की वजह से लोग मुतवज्जा होते थे , हुस्न जाता रहा नीज़ वो ज़माना जाता रहा

माया का क्या जोड़ना, खल खाना, कम्बल ओढ़ना

कंजूस के प्रति कहते हैं जो दुख उठा कर धन जमा' करता है अर्थात ऐसी दौलत जमा' करने का क्या लाभ कि खाने पहनने को भी तरसे

कबीर दास की उल्टी बानी, बरसे कंबल भीजे पानी

उल्टी बात है, जो होना चाहिए वह होता नहीं, होना चाहिए भीजे कंबल बरसे पानी

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