अल्लाह मियाँ की मैं मैं
सीधा सादा भोला भाला, नादान
उतरा पातर, मैं मियाँ तू चाकर
ऋणी के ऋण का भुगतान हो जाए तो उसका सम्मान बढ़ जाता है और वो किसी का दबैल नहीं रहता
मैं की गर्दन में छुरी
अहंकारी सदैव नष्ट होता हैं, घमंडी हमेशा तबाह होता है
मैं उस की सूरत से भी वाक़िफ़ नहीं
मैं ने उसे कभी देखा भी नहीं
मैं उस की शक्ल का कुत्ता भी नहीं पालता
मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता, मुझे उससे अधिक नफ़रत है
मैं ने तुम्हारी चोरी की है
मैंने तुम्हारा कौन सा क़सूर किया है जो मुझ को ुबरा भला कहते हो, मैंने तुम्हारा क्या नुक़्सान किया है जो मेरे ख़िलाफ़ हो
अल्लाह रे मैं
मेरा कोई जवाब नहीं, मेरा क्या कहना है, मुझ से बढ़ कर कौन है (घमंड एवं डींग मारने के अवसर पर प्रयुक्त)
बोले की न चाले की, मैं तो सोते की भली
बहू की सुस्ती एवं काम न करने पर कहते हैं
मैं हूँ या ख़ुदा की ज़ात है
एकांत या लाचारी प्रकट करने के लिए बोलते हैं
बाप डोम और डोम ही दादा, कहे मियाँ मैं शर्मा-ज़ादा
जो अपनी जाति को छुपाए उसके प्रति कहते हैं
तू ने की राम-जनी, मैं ने किया राम-जना
दुश्चरित्र स्त्री दुश्चरित्र पति से कहती है तू बुरा काम करता है तो में भी करती हूँ
टाट की अंगिया मूँज की तनी, देख मेरे देवरा मैं कैसी बनी
जब कोई सब काम बेजा और बे ढंगे करे और इस पर इतराए भी इस वक़्त ये मिसल बोलते हैं
ख़ुदा की ख़ुदाई और मोहम्मद की बादशाही मैं कहूँ पर कहूँ
(ओ) ये हक़ बात है इस के कहने में किसी जगह पाक नावं
ओढ़नी चादर हुई बराबर, मैं भी शाह की ख़ाला हूँ
थोड़े से सामाजिक मान पर इतराना, बिना कारण किसी बड़े आदमी से संबंध ज़ाहिर करना
ओढ़ी चादर हुई बराबर, मैं भी शाह की ख़ाला हूँ
थोड़ी सी जमा-पूँजी और सामर्थ्य पर घमंड, थोड़ी आर्थिक सामर्थ्य पर इतराना
मान न मान मैं दुल्हा की चची
महिलाएँ उस के प्रति कहती हैं जो अपने किसी लाभ के लिए संबंध प्रदर्शित करे
मुझे बुढ़िया न कहो कोई , मैं ने जवानों की भी 'अक़्ल खोई
चालाक ज़ईफ़ अपने मुताल्लिक़ कहता है कि वो जवानों को उंगलीयों पहुंचा सकता है , ज़ईफ़ चालाक औरत का क़ौल है कि में बढ़िया हूँ तो क्या हवा में नौजवानों को भी फ़रेफ़्ता करलेती हूँ , बुज़ुर्गों की बनिसबत जवान नापुख़्ता कार होते हैं, जवान बुज़ुर्गों से इलम-ओ-शऊर हासिल करते हैं