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कब-कब

कब, कितनी बार, किस किस दिन, किस किस समय, किन स्थितियों में

कब की

किस युग का, किस अवधि का

कब को

کِس وقت ، کب.

कब के

बहुत देर पहले, बहुत देर से, बहुत पहले से

कब का

۔کس زمانے کا۔ کس مدّت کا۔ ؎ ۲۔ بہت دیر سے۔ مدت ہوئی کی جگہ۔ ؎

कब लौं

رک : کب تک.

कब-लग

till when? how long?

कब मुवा कब राछस हुआ

अभी उसे धनी हुए ज़्यादा समय नहीं हआ, अभी जल्द ही धनवान हुआ है

कब-तईं

رک : کب تک.

कब मुवा कब कीड़े पड़े

बहुत लंबा काम है जल्द नहीं हो सकता

कब से

किस वक़्त से, किस समय या अवधि से, ख़ुदा जाने कितने दिनों से

कब मरै, कब कीड़े पड़ें

बहुत लंबा काम है, जल्दी नहीं हो सकता

आद-कब

पहला कवि, पहला शायर

कब मुवा और कब राछस हुआ

अभी उसे धनी हुए ज़्यादा समय नहीं हआ, अभी जल्द ही धनवान हुआ है

कब मरे और कब कीड़े पड़ें

बहुत लंबा काम है, जल्दी नहीं हो सकता

कब के बनिया, कब के सेठ

नौ दौलत के मुताल्लिक़ कहते हैं कि पहले नादार था और अब मालदार है

क्यों, कब, कैसे

why, when, how

कब बाप मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब बाबा मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब दादा मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब लौ

رک : کب تک.

कब थूकते हैं

अवमानना ​​के अवसर पर बोलते हैं, अर्थात् वे कभी ध्यान नहीं देते हैं, बिल्कुल ख़्याल नहीं करते, हरगिज़ ख़ातिर में नहीं लाते

कब तक

किस समय या अवधी तक

कब तलक

how long? till when? for how long?

कब की बिल्ली और कब का बिल्ला

जब कोई शख़्स झूटा दावा तजुर्बा कारी का ज़ाहिर करता है इस की निसबत बोलते हैं

होनहार कब मिटता है

होने वाली बात होकर रहती है, मुक़द्दर का लिखा टलता नहीं है

झूटे के पाँव कब हैं

रुक : झूट के पांव कहाँ

कब बाबा मरे, कब बैल बटे

जब किसी बात का इंतिज़ार हो तो कहते हैं , ख़ुदा जाने कब हो कब नहीं ऐसी उम्मीदें ज़ईफ़ होती हैं

बुढ़िया को पैंठ बिना कब सरे

(तिरस्कारपूर्वक) उस बूढ़ी औरत के लिए प्रयोग किया गया है जो तमाशा देखने की शौकीन हो

दूर पड़े कब याद रहते हैं

दौर के रिश्तेदार या दौर दराज़ मुक़ाम पर रिहायश पज़ीर रिश्तेदार या अहबाब कब याद आते हैं

काग़ज़ की नाव कब तक बहेगी

इस मामूली चीज़ से कब तक गुज़ारा होगा

शाम के मुर्दे को कब तक रोइये

जो व्यक्ति शाम को मरे उसे दूसरे दिन जलाते हैं इस लिए परिजनों को रात भर रोना पड़ता है

हारे जुवारी को कब कल पड़ती है

हारा हुआ आदमी चैन से नहीं बैठता उसे हर वक़्त बदला लेने की ख़्वाहिश रहती है

गाहक और मौत का ठीक पता नहीं कब आवे

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

आँख ही फूटी तो भौं कब भाती है

जो बात या विषय ही संबंध का कारण था जब वही न रहा तो फिर संबंध कैसा, जड़ न हो तो शाख़ें बेकार हैं

आँख ही फूटी तो कब भाती है भौं

जो बात या विषय ही संबंध का कारण था जब वही न रहा तो फिर संबंध कैसा, जड़ न हो तो शाख़ें बेकार हैं

गाहक और मौत का ठीक नहीं कब आवे

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

मैं कब कहूँ तीरे बेटे को मिर्गी आती है

कोई बात प्रत्यक्ष रूप से छुपाना परंतु बहाने से जता देना

बकरे की माँ कब तक ख़ैर मनाएगी

व्यक्ति अपने भाग्य एवं अपनी नियति से नहीं बच सकता

जिसने अपनी टोपी उतारी वो दूसरे की उतारते कब डरता है

वह जो अपने सम्मान की परवाह नहीं करता, वह दूसरों के सम्मान की परवाह कब करेगा

कैरी पत्तों की आड़ में कब तक छुपेगी

बुराई छुप नहीं सकती ज़रूर ज़ाहिर हो कर रहती है

हम से कब चल सकते हो

۔ ہم تمہارے فریب میں نہیں آئیں گے۔

गाहक और मौत का ठीक पता नहीं कब आए

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

टाल बजा कर माँगे भीक, उस का जूग रहा कब ठीक

घंटी बजा कर मांगने वाले साधुओं पर कटाक्ष है कि यह कैसी साधुता है जो घंटी बजाकर भीख मांगे, उसकी साधना तो व्यर्थ है

गाहक और मौत का पता नहीं कब आ जाए

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

शाम के मुर्दे का कब तक रोए शेवन करें

हिंदू अपने मर्दे को शाम को आग नहीं देते, सुबह चलाते हैं

शाम के मुर्दे को कब तक रोए शेवन करें

उम्र भर के झगड़े की कहाँ तक शिकायत की जाये

ज़ालिम तेरा ज़ुल्म कब तक रहेगा, कभी तो ख़ुदा हमारी भी सुनेगा

पीड़ित तंग आकर कहता है एक दिन पीड़ित की विनती भी ख़ुदा सुनता है और अत्याचारी के अत्याचार से मुक्ति मिलती है

चढ़ी कड़ाही तेल न आया तो फिर कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

जिस को हराम के टुकरों का मज़ा लगा, उस से मेहनत कब हो सके

जिस को बैठे बिठाए खंए को मिले इस से मेहनत नहीं हो सकती

क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा कब चुग़द को पहचानता है

विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता

क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा को कब चुग़द पहचानता है

विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता

सोते को सोता कब जगाता है

लापरवाह की लापरवाह क्या मदद कर सकता है

चढ़ी कढ़ाई तेल न आया तो फिर कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

चढ़ी कढ़ाई तेल न आया तो कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

मिंक़ब

the instrument with which a person is tapped for dropsy, a trocar

चार-क़ब

अमीरों का लिबास

अंक-बंदी

(खेती) हर किसान पर अलग लगान नियुक्त करने का तरीक़ा

क़ब

तलवार की झनकार

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में कब-कब के अर्थदेखिए

कब-कब

kab-kabکَب کَب

वज़्न : 22

कब-कब के हिंदी अर्थ

क्रिया-विशेषण

  • कब, कितनी बार, किस किस दिन, किस किस समय, किन स्थितियों में

English meaning of kab-kab

Adverb

  • when? how often?, in what situations?

کَب کَب کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

فعل متعلق

  • ۱. کس کس دن ، وقت ، تاریخ ، زمانے یا فصل وغیرہ میں.
  • ۲. کس حالت یا صورت میں ، کس کس وقت.

Urdu meaning of kab-kab

  • Roman
  • Urdu

  • ۱. kis kis din, vaqt, taariiKh, zamaane ya fasal vaGaira me.n
  • ۲. kis haalat ya suurat me.n, kis kis vaqt

खोजे गए शब्द से संबंधित

कब-कब

कब, कितनी बार, किस किस दिन, किस किस समय, किन स्थितियों में

कब की

किस युग का, किस अवधि का

कब को

کِس وقت ، کب.

कब के

बहुत देर पहले, बहुत देर से, बहुत पहले से

कब का

۔کس زمانے کا۔ کس مدّت کا۔ ؎ ۲۔ بہت دیر سے۔ مدت ہوئی کی جگہ۔ ؎

कब लौं

رک : کب تک.

कब-लग

till when? how long?

कब मुवा कब राछस हुआ

अभी उसे धनी हुए ज़्यादा समय नहीं हआ, अभी जल्द ही धनवान हुआ है

कब-तईं

رک : کب تک.

कब मुवा कब कीड़े पड़े

बहुत लंबा काम है जल्द नहीं हो सकता

कब से

किस वक़्त से, किस समय या अवधि से, ख़ुदा जाने कितने दिनों से

कब मरै, कब कीड़े पड़ें

बहुत लंबा काम है, जल्दी नहीं हो सकता

आद-कब

पहला कवि, पहला शायर

कब मुवा और कब राछस हुआ

अभी उसे धनी हुए ज़्यादा समय नहीं हआ, अभी जल्द ही धनवान हुआ है

कब मरे और कब कीड़े पड़ें

बहुत लंबा काम है, जल्दी नहीं हो सकता

कब के बनिया, कब के सेठ

नौ दौलत के मुताल्लिक़ कहते हैं कि पहले नादार था और अब मालदार है

क्यों, कब, कैसे

why, when, how

कब बाप मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब बाबा मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब दादा मरेंगे कब बैल बटेगा

रुक : कब बाबा मरे कब बैल बट्टे

कब लौ

رک : کب تک.

कब थूकते हैं

अवमानना ​​के अवसर पर बोलते हैं, अर्थात् वे कभी ध्यान नहीं देते हैं, बिल्कुल ख़्याल नहीं करते, हरगिज़ ख़ातिर में नहीं लाते

कब तक

किस समय या अवधी तक

कब तलक

how long? till when? for how long?

कब की बिल्ली और कब का बिल्ला

जब कोई शख़्स झूटा दावा तजुर्बा कारी का ज़ाहिर करता है इस की निसबत बोलते हैं

होनहार कब मिटता है

होने वाली बात होकर रहती है, मुक़द्दर का लिखा टलता नहीं है

झूटे के पाँव कब हैं

रुक : झूट के पांव कहाँ

कब बाबा मरे, कब बैल बटे

जब किसी बात का इंतिज़ार हो तो कहते हैं , ख़ुदा जाने कब हो कब नहीं ऐसी उम्मीदें ज़ईफ़ होती हैं

बुढ़िया को पैंठ बिना कब सरे

(तिरस्कारपूर्वक) उस बूढ़ी औरत के लिए प्रयोग किया गया है जो तमाशा देखने की शौकीन हो

दूर पड़े कब याद रहते हैं

दौर के रिश्तेदार या दौर दराज़ मुक़ाम पर रिहायश पज़ीर रिश्तेदार या अहबाब कब याद आते हैं

काग़ज़ की नाव कब तक बहेगी

इस मामूली चीज़ से कब तक गुज़ारा होगा

शाम के मुर्दे को कब तक रोइये

जो व्यक्ति शाम को मरे उसे दूसरे दिन जलाते हैं इस लिए परिजनों को रात भर रोना पड़ता है

हारे जुवारी को कब कल पड़ती है

हारा हुआ आदमी चैन से नहीं बैठता उसे हर वक़्त बदला लेने की ख़्वाहिश रहती है

गाहक और मौत का ठीक पता नहीं कब आवे

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

आँख ही फूटी तो भौं कब भाती है

जो बात या विषय ही संबंध का कारण था जब वही न रहा तो फिर संबंध कैसा, जड़ न हो तो शाख़ें बेकार हैं

आँख ही फूटी तो कब भाती है भौं

जो बात या विषय ही संबंध का कारण था जब वही न रहा तो फिर संबंध कैसा, जड़ न हो तो शाख़ें बेकार हैं

गाहक और मौत का ठीक नहीं कब आवे

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

मैं कब कहूँ तीरे बेटे को मिर्गी आती है

कोई बात प्रत्यक्ष रूप से छुपाना परंतु बहाने से जता देना

बकरे की माँ कब तक ख़ैर मनाएगी

व्यक्ति अपने भाग्य एवं अपनी नियति से नहीं बच सकता

जिसने अपनी टोपी उतारी वो दूसरे की उतारते कब डरता है

वह जो अपने सम्मान की परवाह नहीं करता, वह दूसरों के सम्मान की परवाह कब करेगा

कैरी पत्तों की आड़ में कब तक छुपेगी

बुराई छुप नहीं सकती ज़रूर ज़ाहिर हो कर रहती है

हम से कब चल सकते हो

۔ ہم تمہارے فریب میں نہیں آئیں گے۔

गाहक और मौत का ठीक पता नहीं कब आए

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

टाल बजा कर माँगे भीक, उस का जूग रहा कब ठीक

घंटी बजा कर मांगने वाले साधुओं पर कटाक्ष है कि यह कैसी साधुता है जो घंटी बजाकर भीख मांगे, उसकी साधना तो व्यर्थ है

गाहक और मौत का पता नहीं कब आ जाए

ग्राहक और मृत्यु किसी समय भी आ सकते हैं इसलिए सदैव तैय्यार रहना चाहिए, दोनों के आने का कोई वक़्त नहीं, किसी वक़्त आ जाएँ, ये दोनों कभी भी आ सकते हैं इनके विषय में कुछ भी निश्चित नहीं

शाम के मुर्दे का कब तक रोए शेवन करें

हिंदू अपने मर्दे को शाम को आग नहीं देते, सुबह चलाते हैं

शाम के मुर्दे को कब तक रोए शेवन करें

उम्र भर के झगड़े की कहाँ तक शिकायत की जाये

ज़ालिम तेरा ज़ुल्म कब तक रहेगा, कभी तो ख़ुदा हमारी भी सुनेगा

पीड़ित तंग आकर कहता है एक दिन पीड़ित की विनती भी ख़ुदा सुनता है और अत्याचारी के अत्याचार से मुक्ति मिलती है

चढ़ी कड़ाही तेल न आया तो फिर कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

जिस को हराम के टुकरों का मज़ा लगा, उस से मेहनत कब हो सके

जिस को बैठे बिठाए खंए को मिले इस से मेहनत नहीं हो सकती

क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा कब चुग़द को पहचानता है

विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता

क़द्र उल्लू की उल्लू जानता है, हुमा को कब चुग़द पहचानता है

विशेषज्ञ या निपुण व्यक्ति के गुण-ग्राहक उसके मान-सम्मान से अनभिज्ञ नहीं होते, गुण-ग्राहक ही सम्मान करता है दूसरे को क्या पता

सोते को सोता कब जगाता है

लापरवाह की लापरवाह क्या मदद कर सकता है

चढ़ी कढ़ाई तेल न आया तो फिर कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

चढ़ी कढ़ाई तेल न आया तो कब आएगा

जब काम होने के समय न हुआ तो फिर कभी नहीं हो सकेगा

मिंक़ब

the instrument with which a person is tapped for dropsy, a trocar

चार-क़ब

अमीरों का लिबास

अंक-बंदी

(खेती) हर किसान पर अलग लगान नियुक्त करने का तरीक़ा

क़ब

तलवार की झनकार

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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