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कहाँ-की

कहाँ-कहाँ की

कहाँ की बात कहाँ ले जाना

किसी बात का ग़लत मतलब निकालना, ग़लत मफ़हूम लेना

चल मेरे चर्ख़े चर्रख़ चूँ कहाँ की बुढ़िया कहाँ का तूँ

एक बढ़िया अपनी बेटी से मिलने गई, जंगल में उसे शेर चीता और भेड़ीया और दूसरे जानवर मिले इस ने अपनी जान उन से ये कह कर बचाई कि वो वापसी पर मोटी होकर आएगी, तब खाना वापसी पर वो एक चरखे में बैठ गई और जब कोई जानवर मिलता तो ये फ़िक़रा कह देती वो घबरा कर भाग जाता

घर की जोरू की चौकसी कहाँ तक

अपने ही घर में रहने वाले व्यक्ति की रखवाली करना बहुत कठिन है, घर के चोर की रखवाली बहुत कठिन है

खाई मुग़ल की तहरी अब कहाँ जाएगी बाहरी

धनवान के नमक का बड़ा लालच होता है या वह व्यक्ति ऐसी चाट पर लगा हुआ है कि अब कहीं जा नहीं सकता, मुग़ल की तहरी का स्वाद लग गया, अब जा कहाँ सकती है

खाई मुग़ल की तहरी अब कहाँ जाएगी बहरी

मालदार के नमक का बड़ा लालच होता है या वो शख़्स ऐसी चाट पर लगा हुआ है कि अब कहीं जा नहीं सकता

मैं कहाँ तुम कहाँ

एक दूसरे के बीच एक बड़ा अंतर या दूरी है

कहाँ राम राम , कहाँ टें टें

रुक: कहाँ राजा भोज कहाँ गंगा तीली

कहाँ बी-बी कहाँ बाँदी

छोटे दर्जे के व्यक्ति को ऊँचे दर्जे के व्यक्ति से क्या संबंध, बड़े और छोटे का क्या समानता, मालिक और नौकर की बराबरी कैसे हो सकती है

कहाँ से कहाँ

तू कहाँ और मैं कहाँ

तेरा मेरा क्या मुक़ाबला है, अगर आला से ख़िताब है तो अपने आप को कमतर और अदना से ख़िताब हो तो अपने आप को अफ़ज़ल ज़ाहिर किया जाता है

बात कहाँ से कहाँ जा पहुँचना

मिट्टी कहाँ की है

मालूम नहीं कि मर कर किस जगह दफ़न होंगे , किस जगह मौत आएगी

मैं कहाँ और वो कहाँ

रुक : में कहाँ तुम कहाँ

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली

कहाँ ये कहाँ वो

इन का क्या मुक़ाबला, उन का कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ से कहाँ ले ठिकाने

आएँ तो जाएँ कहाँ

रुक : आव तो जाऐ कहाँ

कहाँ गए थे , कहीं नहीं , कहाँ से आए , कहीं से नहीं

करना ना करना सब बेकार हो गया, ना कहीं आए और ना कहीं गए, वहीं के वहीं रहे

कहाँ गंगा तेली और कहाँ राजा भोज

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा / गंग॒वा, तीली

कहाँ राजा भोज और कहाँ गांगना तेली

छोटे का बड़े से किया मुक़ाबला, अदना को आला से किया निसबत, अच्छे का बुरे से कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा तेली

छोटे का बड़े से किया मुक़ाबला, अदना को आला से किया निस्बत, अच्छे का बुरे से कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ गंगू तेली और कहाँ राजा भोज

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा / गंवा तीली

कहाँ राजा भोज , कहाँ गंगवा तेली

नक़्क़ार ख़ाने में तोती की आवाज़ कहाँ

कहाँ राजा भोज और कहाँ कंगवा तेली

छोटे का बड़े से किया मुक़ाबला, अदना को आला से किया निसबत, अच्छे का बुरे से कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ गंगवा तेली और कहाँ राजा भोज

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा / गंवा तीली

कहाँ राजा भोज और कहाँ गाँगला तेली

छोटे का बड़े से किया मुक़ाबला, अदना को आला से किया निसबत, अच्छे का बुरे से कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ से रंगा के आए हैं

(तंज़न) आप में कौनसी ख़ूबी है

चील के घोंसले में मास कहाँ

फ़ुज़ूलखर्च के पास रुपया मिलना दुशवार है, मुस्रिफ़ हमेशा तंगदस्त रहता है

कहाँ का कहाँ

बे-ठिकाने, काले-कोसों

कहाँ के तीस मार ख़ाँ हैं

कहाँ के ज़बरदस्त दिलावर हैं

इन तिलों में तेल कहाँ

कहाँ बुढ़िया, कहाँ राज कन्या

निम्न और उच्च के बीच क्या संबंध, बड़े और छोटे के बीच क्या प्रतियोगिता, एक बूढ़ी निर्धन महिला के साथ राजक की तुलना क्या?

ये मुँह कहाँ

۔ये हौसला नहीं।

कहाँ ला कर फंसाया

बुरे से पाला डाला, बुरी जगह गिरफ़्तार कराया, किस मुसीबत में डाला, किस बला में मुबतला किया

कहाँ की बला पीछे लगी

कोई चीज़ अगर अप्रिय लगे तो तंग आकर कहते हैं

इन बे-चारों ने हींग कहाँ पाई

इस काम की योग्यता नहीं रखते, उनमें इतनी बुद्धिमानी नहीं है, उनमें इतनी बुद्धि कहाँ कि यह काम करते

यहाँ न वहाँ ये बला कहाँ

ख़ानाबदोश आदमी है एक जगह नहीं टिकता

वो बात कहाँ मौलवी मदन की सी

(अदब) बिलउमूम उस वक़्त मुस्तामल जब ये कहना हो कि वो ख़ास बात या तासीर नहीं है जो किसी और की बात में है

कहाँ हो कहाँ न हो

आग में धुवाँ कहाँ

हर बात की बुनियाद ज़रूर होती है, हर इल्लत के लिए मालूल ज़रूर है

कहां गांगला तेली और कहाँ राजा भोज

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा / गंग॒वा, तीली

सर कहाँ फोड़ूँ

किस जगह तलाश या खोज करूँ, किस से आग्रह करूँ, किस से फ़रियाद करूँ

कहाँ के हैं

कौन सी सरज़मीन और कौन से मुल॒क के रहने वाले हैं, किस मख़फ़ी शहर के हैं, ऐसे कौन हैं

कहाँ का आना कहाँ का जाना

कैसा आना जाना कैसा मिलना जुलना, कैसी मुलाक़ात, कैसा वास्ता, अर्थात : न कहीं आना है न कहीं जाना है

कहाँ जाऊँ, चूहे का बिल नहीं मिलता

सख़्त नाचारी ज़ाहिर करने को कहते हैं, कभी भी पनाह नहीं मिलती

कहाँ-कहाँ

दुश्मन कहाँ , बग़ल में

पेट इंसान का बड़ा दुश्मन है सब कुछ कराता है

कहाँ जाऊँ

क्या ईलाज करूं, क्या तदबीर करूं

काँटे बोए बबूल के तो आम कहाँ से खाए

बुरा काम करके भलाई की आशा रखना, फ़ुज़ूल और मुर्खतापूर्ण क्रिया है, जैसा बोओगे वैसा काटोगे, जौ बोओ गे तो गेहूं कैसे काटोगे, जौ बोओगे तो जौ ही काटोगे

कहाँ जाऊँ

निकाही न बियाही मंडो बहू कहाँ से आई

किसी नापसंदीदा शख़्स के ख़्वाहमख़्वाह किसी से मुतवस्सिल हो जाने पर या ख़्वाहमख़्वाह रिश्तेदारी जताने पर कहते हैं

झूटों के पैर कहाँ

रुक : झूट के पांव कहाँ

आए तो जाए कहाँ

रुक: आओ तो जाओ कहाँ

इन तिलों तेल कहाँ

बेमुरव्वत या बख़ील हैं, पसेजते नहीं, रखाई करते हैं, असर क़बूल नहीं करते

मगर वो बात कहाँ मौलवी मदन की सी

अगरचे बहुत मेहनत और कोशिश से नक़ल उतारी है लेकिन फिर भी नक़ल में असल की सी ख़ूबी नहीं, नक़ल तो उतारी मगर असल जैसी नहीं

कहाँ ननवा तेली, कहाँ राजा भोग

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा तीली

कहाँ ननवा तेली, कहाँ राजा भोज

रुक : कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगा तीली

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में कहाँ-की के अर्थदेखिए

कहाँ-की

kahaa.n-kiiکہاں کی

वज़्न : 122

मूल शब्द: कहाँ जाऊँ

کہاں کی کے اردو معانی

  • کہاں کا کی تانیث، کیسی، تراکیب میں مستعمل
  • تحقیر کے واسطے کہتے ہیں، بیجا اور بے موقع کی جگہ

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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