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क्या कह के कोसूँ

रुक : किया कोसों

क्या कह कर कोसूँ

शामत कह के नहीं आती

मुसीबत या आफ़त यकायक नाज़िल हो जाती है

कह सुन के

कोई कह के सुनाए, हम कर के दिखाएँ

हम बातें करने वाले नहीं काम करने वाले हैं

शामतें कह के थोड़े आती हैं

किस मुँह से कोसूँ

क्या कोसूँ

(निहायत ख़फ़गी और हसद के मौक़ा पर कहते हैं) क्या बुरा भला कहूं, क्या दुआएं दूं

सच्ची बात सा'दुल्लाह कह सब के मन से उतरा रहे

बंदा तो सच्च ही बोलेगा ख़ाह लोगों को गिरां गुज़रे, सच्ची बात कहने वाले को लोग पसंद नहीं करते

शहना छुपा पियाल में, कौन कह के बैरी हो

कोतवाल पियाल में छिपा है कौन कह के दुश्मनी मूल ले (इशारे से, अपना पहलू बचाते हुए या महिज़ हमाक़त से राज़ फ़ाश करना

क्या आसमाँ के तारे हैं

कोई ऐसी दुनिया से निराली या नायाब चीज़ नहीं

मंडवे के आटे में शर्त क्या

मामूल के मुआमले में किसी बात की शर्त करना फ़ुज़ूल होता है

क्या आसमान के तारे हैं

सर मुंडा के क्या घुटना मुंडवाओगे

क्या सब कुछ खो बैठने का इरादा है ये भी ने रहा तो फिर क्या करोगे, फ़ुज़ूलखर्च से कहते हैं

हाथ कंगन के लिए क्या आरसी

क्या उन्हीं के सर टेका है

ये काम उन्हीं पर मौक़ूफ़ नहीं है, कुछ उन्हीं पर इस काम या बात का दारू मदार नहीं है

दिवानों के क्या सर सींग होते हैं

बेवक़ूफ़ हो, यानी तुम्हारे सड़ी या सौदाई होने में कोई शक नहीं

ख़ुदा के घर में क्या इंसाफ़ नहीं

ख़ुदा इंसाफ़ करता है वो ज़ुल्म की सज़ा ज़रूर देता है

दीवानों के सर पर क्या सींग होते हैं

दीवाने भी दूसरे लोगों की तरह होते हैं

क्या गुप-चुप के लड्डू खाए हैं

बोलते क्यों नहीं, ख़ामोश क्यों हो

जिस के सर हथियार उस का क्या ए'तिबार

सींग वाले जानवर का कुछ भरोसा नहीं जब चाहे मार बैठे

जिस के सर पर हथियार उस का क्या ए'तिबार

आँख के आगे नाक, सूझे क्या ख़ाक

आँख पर तो परदा पड़ा है, दिखाई क्या दे

जिस गाँव जाना नहीं उस के कोसों से क्या मतलब

रुक : जिस पाट नहीं चलना अलख

क्या बोर के लड्डू हैं

कुछ नायाब चीज़ नहीं है क्यों पछताते हो

सूरज को क्या आर्सी ही ले के देखते हैं

जो बात ज़ाहिर हो उस की तशरीअ की ज़रूरत नहीं होती

गंगा के मेले में चक्की रहे का क्या काम

बड़े लोगों के मजमा में अदना की कौन सुनता है , बेमहल और बे मौक़ा काम की क़दर नहीं होती

ख़ुदा के कारख़ाने में क्या दख़्ल

ख़ुदा के मुआमलात में बंदे के दख़ल की गुंजाइश नहीं, अल्लाह के हुक्म में बंदा का बस नहीं

रोगी से रोगी मिले कह के नीम खा नीम

जब बीमार आदमी इकट्ठे होते हैं तो एक दूओसरे को दवाईयां बताते हैं, जैसी अपनी अक़ल होती है इंसान दूओसरे को भी वैसी ही साह देता है

यार की यारी से काम उस के फे़'लों से क्या काम

दोस्त की दोस्ती से ग़रज़ है उसकी करतूतों से क्या मतलब। यह कहावत दोस्त के ऐबों पर ध्यान न देने के अवसर पर बोलते हैं

कह देंगे

किसी आदेश के टालने या खंडन करने के अवसर पर बोलते हैं अर्थात फिर किसी समय बताएँगे, अवसर आने पर बताएँगे, क्या जल्दी है

राँड के आगे गाली क्या

रुक : रांड से प्रिय कोसना किया

राजा हुए तो क्या हुआ अंत जाट के जाट

कमीना कितने ही बलंद मर्तबा पर पहुंच जाये उस की फ़ितरत नहीं बदलती , दौलतमंद हो जाने के बावजूद पुरानी आदतें नहीं बदलतीं

राजा भए तो क्या हुआ अंत जाट के जाट

कमीना कितने ही बलंद मर्तबा पर पहुंच जाये उस की फ़ितरत नहीं बदलती , दौलतमंद हो जाने के बावजूद पुरानी आदतें नहीं बदलतीं

पीर की पीरी से काम पीर के फ़े'लों से क्या काम

۔मक़ूला। (ओ)बुज़ुर्ग की बुजु़र्गी से मतलब है इस के अफ़आल की तहक़ीक़ात फ़ुज़ूल है

यार की यारी से काम यार के फ़े'लों से क्या काम

रुक : यार की यारी से काम इस के फे़अलों से किया काम

यार के फ़े'लों से क्या है , यार की यारी से काम

रुक : यार की यारी से काम इस के फे़अल से अलख

नंगा नहा के क्या निचोड़ेगा

रुक : नंगा नहाएगा किया निचोड़ेगा किया

शम' के सामने चराग़ की क्या ज़रूरत

अच्छी चीज़ की मौजूदगी में मामूली चीज़ की ज़रूरत नहीं रहती

ख़ुदा के घर में क्या कमी है

ईश्वर के पास सब कुछ है, ईश्वर सब कुछ दे सकता है

जिस राह न जाना उस के कोस क्या गिनना

जिस बात से कुछ ग़रज़ नहीं उस की फ़िक्र अबस है

हँसते-हँसते कह उठना

मज़ाक़ मज़ाक़ में सब कुछ सुना देना, बड़ी से बड़ी बात मज़ाक़ में कह देना

ख़ाली बनिया क्या करे इस कोठी के धान उस कोठी में भरे

व्यर्थ और बेकार कामों के संबंध में बोलते हैं

बैठा बनिया क्या करे इस कोठी के धान उस कोठी में भरे

बेकार आदमी फ़ुज़ूल बेनतीजा काम किया करते हैं

बैठा बनिया क्या करे इस कोठी के धान उस कोठी में करे

बेकार आदमी फ़ुज़ूल बेनतीजा काम किया करते हैं

ठाली बनिया क्या करे इस कोठी के धान उस कोठी में करे

बेकार आदमी फ़ुज़ूल और बेफ़यादा कामों में लगा रहता है, बेकाम आदमी उल्टे‍ सीधे काम करता रहता है

बैठा बनिया क्या करे इस कोठी के धान उस कोठी में धरे

बेकार आदमी फ़ुज़ूल बेनतीजा काम किया करते हैं

क़ाज़ी जी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा

एक के ना होने से कुछ नुक़्सान नहीं

कुछ कह नहीं सकता

ग़ैर यक़ीनी बात है , ना गुफ़्ता बह अमर है , बयान से बाहर है

क्या भाड़ में झोंकें

बेकार, फ़ुज़ूल

समा करे न क्या करे समैं समैं की बात, किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात

हर मौसम अपना उचित काम करता है, मनुष्य कुछ नहीं कर सकता, कभी दिन बड़ा होता है कभी रात अर्थात हालात के आगे मनुष्य लाचार है

मुँह से कह डालना

ज़बान से कहना

मुँह से कह बैठना

रुक : मुँह से कह उठना, ज़बान से कहना

मुँह से कह उठना

बे-अख़्तियारी में कोई बात मुँह से निकल जाना , ज़बान से कोई बे मौक़ा बात कह देना

मुँह से कह डालना

ज़बान से कहना

सूखे से मुँह कह देना

बेमुरव्वती से जवाब दे देना , तल्ख़-ओ-नामतबु जवाब दे देना

मुँह में जो आए कह जाना

घर के जले बन गए बन में लागी आग बन बिचारा क्या करे जो कर्मों लागी आग

बदनसीब का कहीं भी ठिकाना नहीं जहां जाएगा वहीं सख़्ती उठाएगा

कह सुनाना

वर्णन करना, बयान करना

क्या मैं तेरी पट्टी के नीचे पैदा हुई हूँ

मैं तुझ से लघुतर नहीं हूँ कि दब जाऊँ

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में क्या कह के कोसूँ के अर्थदेखिए

क्या कह के कोसूँ

kyaa kah ke kosuu.nکیا کَہہ کے کوسُوں

वाक्य

देखिए: क्या कोसूँ

क्या कह के कोसूँ के हिंदी अर्थ

  • रुक : किया कोसों
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کیا کَہہ کے کوسُوں کے اردو معانی

  • رک : کیا کوسوں.

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