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खन-आना

(دلاّلی) اعشاری سکّہ سے قبل رائج نصف آنہ قیمت کا سکّہ جبکہ ایک روپے میں ۱۶ آنے ہوتے تھے ، آدھ آنہ ٹکا

ख़ाना-ए-आईना

काँच के महल, शीश महल; शीशे के घर

कहीं न कहीं

किसी न किसी जगह, किसी न किसी स्थान पर

न कहीं

ऐसा ना हो

ख़ान-ए-ख़ानाँ की कमाई मियाँ फ़हीम ने उड़ाई

उस अवसर पर बोलते हैं जब पराया माल अंधाधुंध ख़र्च किया जाए

मुँह न तोह नाम चाँद ख़ाँ

جس صفت میں مشہور ہے اس کے خلاف صف سے متصف ہے، (کسی میں) شہرت کے مطابق صفت نہیں پائی جاتی بلکہ اس سے متضاد صفت پائی جاتی ہے

पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं आदमी के पूत ने भी पढ़ा है

फ़ौजियों या उच्च कुल की संतानों के न पढ़ने पर व्यंग है

तेरे तोड़े तो मैं बेर भी न खाऊँ

(ओ) मुझे तुझ से नफ़रत है यानी तो अगर बेरों को छोले तो में खाऊं

आप ने उड़ाईं हम ने भून भून खाईं

हम तुमसे अधिक चालाक हैं, तुम्हारी चालों को ख़ूब समझते हैं

फ़रिश्ते ख़ाँ का गुज़र न होना

किसी की पहुँच न होना

यहाँ न वहाँ ये बला कहाँ

ख़ानाबदोश आदमी है एक जगह नहीं टिकता

तुम ने उड़ाईं , हम ने भून भून खाईं

I am cleverer than you.

इन बे-चारों ने हींग कहाँ पाई जो बग़ल में लगाई

इस काम की योग्यता नहीं रखते, उनमें इतनी बुद्धिमानी नहीं है, उनमें इतनी बुद्धि कहाँ कि यह काम करते

न ख़ान में , न ख़ान के ऊँटों में

कोई हैसियत नहीं, किसी शुमार क़तार में नहीं

रोज़े रखें न नमाज़ पढ़ें, सहरी भी न खाएं तो काफ़िर हो जाएं

نفس پرورں کا مقولہ ہے.

कहाँ हो कहाँ न हो

who knows where (he, etc.) may be

ख़ून दामन से न छूटना

(کنایۃً) قتل کرنے کا الزام قائم رہنا

जैसे ऊधो वैसे ख़ान, न उन के चोटी न उन के कान

दोनों एक से हैं

मारे न चूही, नाम फ़तेह ख़ाँ

मुफ़्त में बहादुर प्रसिद्ध हो गए

कहीं नज़र न लग जाए

(तंज़न) ऐसे शख़्स मी मज़म्मत या हजव जिस का फे़अल, मुतकल्लिम की तबीयत या तवक़्क़ो के ख़िलाफ़ हो

ख़ून बदन में न होना

भयंकर रूप से भयभीत होना, बहुत डरना

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ایک ماما سحری کھا لیتی تھی روزہ نہ رکھتی تھی ، ایک دن مالک نے پوچھا تو یہ جواب دیا ، یعنی دین کی مطلب کی بات مان لی اور تکلیف کی بات چھوڑ دی.

इन बे-चारों ने हींग कहाँ पाई

इस काम की योग्यता नहीं रखते, उनमें इतनी बुद्धिमानी नहीं है, उनमें इतनी बुद्धि कहाँ कि यह काम करते

ओछे के घर खाना, जनम जनम का ता'ना

नीच थोड़ा एहसान करके हमेशा ता'ने दिया करता है

नाक न हो तो गुह खाएँ

आबरू की पर्वा ना करें (औरतों की बद अकली के इज़हार के लिए मुस्तामल)

घर का और दिल का भेद हर एक के सामने न कहें

अपने दिल और घर की बात हर एक से नहीं कहनी चाहिए, गोपनीयता से काम लेना चाहिए

रूई के धोके कहीं कपास न निगल जाना

आसान के धो के में कहीं मुश्किल में ना पड़ जाना - हर काम सोच समझ कर करना चाहिए - ज़ाहिर से धोका नहीं खाना चाहिए

भानमती ने कुंबा जोड़ा, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा

आवारा, लुच्चा या विभिन्न प्रकार के लोगों के मिश्रित समूह के लिए उपयोग किया जाता है

कहीं ऐसा न हो जाए

उम्मीद के विपरीत कुछ न हो जाए, सामान्यतः चिंता के मौक़े पर हम ऐसा कहते हैं

बर कन्या को चेचक खाए, नाव काट का कहीं न जाए

हर हाल में अपना मतलब निकाल लेता है

चोर, जुवारी, गठ-कटा, जार और नार छिनार, सौ सौ सौगंध खाएँ जो मोल न कर इतबार

चोर, जवारी, गठ-कटा, चरित्रहीन मर्द, दुश्चरित्र औरत, ये कितनी ही सौगंध खाएँ कि बुरा काम छोड़ देंगे, कदापि 'एतबार नहीं करना चाहिए

ख़लील ख़ाँ ने फ़ाख़्ता मारी

۔मिसल अदना काम पर बहुत इतराने वाले की निसबत बोलते हैं

रूई के धोके में कहीं कपास न निगल जाना

आसानी के धोखे में कहीं मुश्किल में न पड़ जाना, हर काम सोच-समझ कर करना चाहिए, प्रकट से धोखा नहीं खाना चाहिए

चिट्ठी न परवाना मार खाएँ मुल्क बेगाना

हुकूमत की बदइंतिज़ामी और हाकिम की ग़फ़लत से बदमाश ख़्वाहमख़्वाह लागों को लौटते फिरते हैं

मैं अब कहीं का न रहा

मैं अब किसी की तरफ़ नहीं रहा, मैं अब किसी लायक़ नहीं रहा, अब मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकता

कहीं का न रहना

۱. तबाह-ओ-बर्बाद हो जाना, किसी गों का ना होना, किसी काम या जगह के लायक़ ना होना, ज़लील-ओ-रुस्वा हो जाना , मक़सद को ना पहुंचना

कहीं का न रखा

बेइज़्ज़त करना, बेआबरु करना

नाक न हो तो गू खाएँ

महिलाओं की निंदा में प्रयुक्त, अर्थात अगर इज़्ज़त की परवाह न हो तो ख़राब से ख़राब बैठें

न तू कह मेरी न मैं कहूँ तेरी

तुम मेरा ऐब छुपाओ, में तुम्हारा ऐब छुपाऊंगा

चिट्ठी न परवाना मार खाएँ मुल्क बिराना

हुकूमत की बदइंतिज़ामी और हाकिम की ग़फ़लत से बदमाश ख़्वाहमख़्वाह लागों को लौटते फिरते हैं

न मैं कहूँ तेरी, न तू कह मेरी

जो व्यक्ति दूसरे को दोष नहीं देता तो दूसरा भी उसे दोष नहीं देता, आपस की गोपनीयता के संबंध में बोलते हैं

हल्क़ न तालू खाएँ मियाँ लालू

बदतमीज़ आदमी बदतमीज़ी से खाए तो कहते हैं

भानुमति ने कुंबा जोड़ा, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा

कोई बिल्कुल ही बिना सिर-पैर का काम

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुंबा जोड़ा

कोई बिल्कुल ही बिना सिर-पैर का काम

दीन-ओ-दुनिया कहीं का न रखना

हर प्रकार से अपमानित होना

पुलाव की रकाबी कहीं न जाना

आराम-ओ-आसाइश, ऐश आराम की ज़िंदगी में ख़लल ना आना

कहूँ तो माँ मारी जाए, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाए

हर प्रकार से संकट है, न कहते बनता है न चुप रहते

बी बी वारे बाँदी खाए, घर की बला कहीं न जाए

घर की मालिका अगर दान-दक्षिणा घर ही में बाँदी को दे दे तो उसका देना न देना बराबर है

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक चराऊँ न बाली खाऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

निकाही न बियाही नहरो बहू कहाँ से आई

किसी अप्रिय व्यक्ति के बिना कारण किसी से व्यवहारिक हो जाने पर या बिना कारण रिश्तेदारी जताने पर कहते हैं

पूरी से पूरी पड़े तो सभी न पूरी खाएँ

अपव्यय अर्थात आवश्यक्ता से अधिक ख़र्च करने से गुज़ारा नहीं होता

पूरी से पूरी पड़े तो सब ही न पूरी खाएँ

अपव्यय अर्थात आवश्यक्ता से अधिक ख़र्च करने से गुज़ारा नहीं होता

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक खाऊँ न बाली चुराऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

निकाही न बियाही, मुंडो बहू कहाँ से आई

किसी अप्रिय व्यक्ति के बिना कारण किसी से व्यवहारिक हो जाने पर या बिना कारण रिश्तेदारी जताने पर कहते हैं

चातुर तो बैरी भला मूरख भला न मीत, साध कहें हैं मत करो को मूरख से प्रीत

बुद्धिमान शत्रु मूर्ख दोस्त से अच्छा होता है इस लिए मूर्ख से दोस्ती नहीं करनी चाहिये

ताल सूख पटपर भयो हंसा कहीं न जाय मरे पुरानी पीत को चुन-चुन कंकर खाय

मातृभूमि बहुत प्रिय होती है, चाहे आदमी को खाने को न मिले उसे छोड़कर जाना नहीं चाहता

प्रीतम प्रीतम सब कहें प्रीतम जाने न कोय, एक बार जो प्रीतम मिले सदा आनंद फिर होय

हर एक प्रेम करता है परंतु प्रेम की समझ किसी को नहीं

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता मुकनारन को जो गया न गया सो कहीं न गया

बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता कल्तारन को जो गया न गया सो कहीं न गया

बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है

प्रीतम प्रीतम सब कहें प्रीतम जाने न कोय, एक बार जो प्रीतम मिलें सदा अनंदी होय

हर एक प्रेम करता है परंतु प्रेम की समझ किसी को नहीं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में नाक दम आना के अर्थदेखिए

नाक दम आना

naak dam aanaناک میں دم آنا

मुहावरा

नाक दम आना के हिंदी अर्थ

  • तंग होना, आम तौर से नाक में दम आना बोला जाता है

ناک میں دم آنا کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • تنگ ہونا، بیشتر ناک میں دم آنا مستعمل ہے

Urdu meaning of naak dam aana

  • Roman
  • Urdu

  • tang honaa, beshatar naak me.n dam mustaamal huy

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खन-आना

(دلاّلی) اعشاری سکّہ سے قبل رائج نصف آنہ قیمت کا سکّہ جبکہ ایک روپے میں ۱۶ آنے ہوتے تھے ، آدھ آنہ ٹکا

ख़ाना-ए-आईना

काँच के महल, शीश महल; शीशे के घर

कहीं न कहीं

किसी न किसी जगह, किसी न किसी स्थान पर

न कहीं

ऐसा ना हो

ख़ान-ए-ख़ानाँ की कमाई मियाँ फ़हीम ने उड़ाई

उस अवसर पर बोलते हैं जब पराया माल अंधाधुंध ख़र्च किया जाए

मुँह न तोह नाम चाँद ख़ाँ

جس صفت میں مشہور ہے اس کے خلاف صف سے متصف ہے، (کسی میں) شہرت کے مطابق صفت نہیں پائی جاتی بلکہ اس سے متضاد صفت پائی جاتی ہے

पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं आदमी के पूत ने भी पढ़ा है

फ़ौजियों या उच्च कुल की संतानों के न पढ़ने पर व्यंग है

तेरे तोड़े तो मैं बेर भी न खाऊँ

(ओ) मुझे तुझ से नफ़रत है यानी तो अगर बेरों को छोले तो में खाऊं

आप ने उड़ाईं हम ने भून भून खाईं

हम तुमसे अधिक चालाक हैं, तुम्हारी चालों को ख़ूब समझते हैं

फ़रिश्ते ख़ाँ का गुज़र न होना

किसी की पहुँच न होना

यहाँ न वहाँ ये बला कहाँ

ख़ानाबदोश आदमी है एक जगह नहीं टिकता

तुम ने उड़ाईं , हम ने भून भून खाईं

I am cleverer than you.

इन बे-चारों ने हींग कहाँ पाई जो बग़ल में लगाई

इस काम की योग्यता नहीं रखते, उनमें इतनी बुद्धिमानी नहीं है, उनमें इतनी बुद्धि कहाँ कि यह काम करते

न ख़ान में , न ख़ान के ऊँटों में

कोई हैसियत नहीं, किसी शुमार क़तार में नहीं

रोज़े रखें न नमाज़ पढ़ें, सहरी भी न खाएं तो काफ़िर हो जाएं

نفس پرورں کا مقولہ ہے.

कहाँ हो कहाँ न हो

who knows where (he, etc.) may be

ख़ून दामन से न छूटना

(کنایۃً) قتل کرنے کا الزام قائم رہنا

जैसे ऊधो वैसे ख़ान, न उन के चोटी न उन के कान

दोनों एक से हैं

मारे न चूही, नाम फ़तेह ख़ाँ

मुफ़्त में बहादुर प्रसिद्ध हो गए

कहीं नज़र न लग जाए

(तंज़न) ऐसे शख़्स मी मज़म्मत या हजव जिस का फे़अल, मुतकल्लिम की तबीयत या तवक़्क़ो के ख़िलाफ़ हो

ख़ून बदन में न होना

भयंकर रूप से भयभीत होना, बहुत डरना

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ایک ماما سحری کھا لیتی تھی روزہ نہ رکھتی تھی ، ایک دن مالک نے پوچھا تو یہ جواب دیا ، یعنی دین کی مطلب کی بات مان لی اور تکلیف کی بات چھوڑ دی.

इन बे-चारों ने हींग कहाँ पाई

इस काम की योग्यता नहीं रखते, उनमें इतनी बुद्धिमानी नहीं है, उनमें इतनी बुद्धि कहाँ कि यह काम करते

ओछे के घर खाना, जनम जनम का ता'ना

नीच थोड़ा एहसान करके हमेशा ता'ने दिया करता है

नाक न हो तो गुह खाएँ

आबरू की पर्वा ना करें (औरतों की बद अकली के इज़हार के लिए मुस्तामल)

घर का और दिल का भेद हर एक के सामने न कहें

अपने दिल और घर की बात हर एक से नहीं कहनी चाहिए, गोपनीयता से काम लेना चाहिए

रूई के धोके कहीं कपास न निगल जाना

आसान के धो के में कहीं मुश्किल में ना पड़ जाना - हर काम सोच समझ कर करना चाहिए - ज़ाहिर से धोका नहीं खाना चाहिए

भानमती ने कुंबा जोड़ा, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा

आवारा, लुच्चा या विभिन्न प्रकार के लोगों के मिश्रित समूह के लिए उपयोग किया जाता है

कहीं ऐसा न हो जाए

उम्मीद के विपरीत कुछ न हो जाए, सामान्यतः चिंता के मौक़े पर हम ऐसा कहते हैं

बर कन्या को चेचक खाए, नाव काट का कहीं न जाए

हर हाल में अपना मतलब निकाल लेता है

चोर, जुवारी, गठ-कटा, जार और नार छिनार, सौ सौ सौगंध खाएँ जो मोल न कर इतबार

चोर, जवारी, गठ-कटा, चरित्रहीन मर्द, दुश्चरित्र औरत, ये कितनी ही सौगंध खाएँ कि बुरा काम छोड़ देंगे, कदापि 'एतबार नहीं करना चाहिए

ख़लील ख़ाँ ने फ़ाख़्ता मारी

۔मिसल अदना काम पर बहुत इतराने वाले की निसबत बोलते हैं

रूई के धोके में कहीं कपास न निगल जाना

आसानी के धोखे में कहीं मुश्किल में न पड़ जाना, हर काम सोच-समझ कर करना चाहिए, प्रकट से धोखा नहीं खाना चाहिए

चिट्ठी न परवाना मार खाएँ मुल्क बेगाना

हुकूमत की बदइंतिज़ामी और हाकिम की ग़फ़लत से बदमाश ख़्वाहमख़्वाह लागों को लौटते फिरते हैं

मैं अब कहीं का न रहा

मैं अब किसी की तरफ़ नहीं रहा, मैं अब किसी लायक़ नहीं रहा, अब मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकता

कहीं का न रहना

۱. तबाह-ओ-बर्बाद हो जाना, किसी गों का ना होना, किसी काम या जगह के लायक़ ना होना, ज़लील-ओ-रुस्वा हो जाना , मक़सद को ना पहुंचना

कहीं का न रखा

बेइज़्ज़त करना, बेआबरु करना

नाक न हो तो गू खाएँ

महिलाओं की निंदा में प्रयुक्त, अर्थात अगर इज़्ज़त की परवाह न हो तो ख़राब से ख़राब बैठें

न तू कह मेरी न मैं कहूँ तेरी

तुम मेरा ऐब छुपाओ, में तुम्हारा ऐब छुपाऊंगा

चिट्ठी न परवाना मार खाएँ मुल्क बिराना

हुकूमत की बदइंतिज़ामी और हाकिम की ग़फ़लत से बदमाश ख़्वाहमख़्वाह लागों को लौटते फिरते हैं

न मैं कहूँ तेरी, न तू कह मेरी

जो व्यक्ति दूसरे को दोष नहीं देता तो दूसरा भी उसे दोष नहीं देता, आपस की गोपनीयता के संबंध में बोलते हैं

हल्क़ न तालू खाएँ मियाँ लालू

बदतमीज़ आदमी बदतमीज़ी से खाए तो कहते हैं

भानुमति ने कुंबा जोड़ा, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा

कोई बिल्कुल ही बिना सिर-पैर का काम

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुंबा जोड़ा

कोई बिल्कुल ही बिना सिर-पैर का काम

दीन-ओ-दुनिया कहीं का न रखना

हर प्रकार से अपमानित होना

पुलाव की रकाबी कहीं न जाना

आराम-ओ-आसाइश, ऐश आराम की ज़िंदगी में ख़लल ना आना

कहूँ तो माँ मारी जाए, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाए

हर प्रकार से संकट है, न कहते बनता है न चुप रहते

बी बी वारे बाँदी खाए, घर की बला कहीं न जाए

घर की मालिका अगर दान-दक्षिणा घर ही में बाँदी को दे दे तो उसका देना न देना बराबर है

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक चराऊँ न बाली खाऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

निकाही न बियाही नहरो बहू कहाँ से आई

किसी अप्रिय व्यक्ति के बिना कारण किसी से व्यवहारिक हो जाने पर या बिना कारण रिश्तेदारी जताने पर कहते हैं

पूरी से पूरी पड़े तो सभी न पूरी खाएँ

अपव्यय अर्थात आवश्यक्ता से अधिक ख़र्च करने से गुज़ारा नहीं होता

पूरी से पूरी पड़े तो सब ही न पूरी खाएँ

अपव्यय अर्थात आवश्यक्ता से अधिक ख़र्च करने से गुज़ारा नहीं होता

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक खाऊँ न बाली चुराऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

निकाही न बियाही, मुंडो बहू कहाँ से आई

किसी अप्रिय व्यक्ति के बिना कारण किसी से व्यवहारिक हो जाने पर या बिना कारण रिश्तेदारी जताने पर कहते हैं

चातुर तो बैरी भला मूरख भला न मीत, साध कहें हैं मत करो को मूरख से प्रीत

बुद्धिमान शत्रु मूर्ख दोस्त से अच्छा होता है इस लिए मूर्ख से दोस्ती नहीं करनी चाहिये

ताल सूख पटपर भयो हंसा कहीं न जाय मरे पुरानी पीत को चुन-चुन कंकर खाय

मातृभूमि बहुत प्रिय होती है, चाहे आदमी को खाने को न मिले उसे छोड़कर जाना नहीं चाहता

प्रीतम प्रीतम सब कहें प्रीतम जाने न कोय, एक बार जो प्रीतम मिले सदा आनंद फिर होय

हर एक प्रेम करता है परंतु प्रेम की समझ किसी को नहीं

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता मुकनारन को जो गया न गया सो कहीं न गया

बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता कल्तारन को जो गया न गया सो कहीं न गया

बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है

प्रीतम प्रीतम सब कहें प्रीतम जाने न कोय, एक बार जो प्रीतम मिलें सदा अनंदी होय

हर एक प्रेम करता है परंतु प्रेम की समझ किसी को नहीं

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