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टैग्ज़: हिंदू धर्म
संस्कृत, हिंदी - संज्ञा, पुल्लिंग
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हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह
ग़म बहुत दिन मुफ़्त की खाता रहा
अब उसे दिल से निकाला चाहिए
मुझ से कहता है कि साए की तरह साथ हैं हम
यूँ न मिलने का निकाला है बहाना कैसा
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
जैसे अभी भिगो के निकाला हो जाम से
Sanskrit, Hindi - Noun, Masculine
سنسکرت، ہندی - اسم، مذکر
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