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क़सम खाने ही के लिए है

दग़ाबाज़ लोग क़सम खाने की कुछ पर्वा नहीं करते, झूटों का मक़ूला है कि क़सम खाने कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता झूटी हो या सच्ची

किरिया और तरकारी खाने ही के लिए है

झूठी सौगंध खाए तो उसकी औचित्यता में कहते हैं

हल्वा खाने के लिए चाहिए

अच्छी चीज़ के लिए इस का अहल होना ज़रूरी है

क़ाज़ी जी खाना आया, हमें क्या, तुम्हारे ही लिए है फिर तुम्हें क्या

बेकार में हर काम में हस्तक्षेप करने वाले के संबंधित कहते हैं, बेमतलब बोलने वाले से कहते हैं, जब कोई अपने मतलब की बात स्पष्ट न कहे, तब उससे भी कहते हैं

गालियाँ और तरकारी खाने के वस्ते हैं

जब कोई तहम्मुल या बुज़दिली के बाइस गाली का जवाब ना दे तो मज़ाक़न कहते हैं कि गाली खाने के लिए ही होती है

ग़ैर के लिए कुँवाँ खोदेगा, सो आप ही डूबे गा

जो दूसरे को नुक़्सान पहुंचाने की कोशिश करता है ख़ुद ही नुक़्सान उठाता है

ये दिन सब के लिये है

मरना सब को है, ये दिन लाज़िमी है , रुक : ये दिन सब को धरा है

ये लच्छन मार खाने के हैं

ऐसी बातों पर इंसान पटता है

गाली और तरकारी खाने के वास्ते हैं

दुर्वचन सुनकर क्रोध न करने

गाली और भात खाने के वास्ते हैं

जब कोई तहम्मुल या बुज़दिली के बाइस गाली का जवाब ना दे तो मज़ाक़न कहते हैं कि गाली खाने के लिए ही होती है

सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है

खाने के दाँत और हैं दिखाने के और

दिखावटी चीज़ें काम नहीं देतीं

हाथी के दाँत दिखाने के और हैं खाने के और

अँगूठे के बा'द छँगुलिया ही आती है

आमतौर पर छोटे ही बड़ों की अनुसरण करते हैं (जिस तरह नापने में जहाँ पहला अँगूठा रखते हैं बाद में वहीं छँगुलिया रखते हैं)

आदमी अपने मतलब के लिए पहाड़ के कंकर ढोता है

मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए हर प्रकार के कष्ट सहता है

दुल्हा ही के सर सेहरा है

जो सरदार होता है सब कुछ उसी के हाथ में होता है, नाम सरदार ही का होता है

किस दिन के लिए उठा रखा है

कब के लिए मुल्तवी किया है, कुर्ते क्यों नहीं

हम अभी से फ़ातिहा के लिए हाथ उठाते हैं

(महिला) जब कोई झूट-मूट मरने की धमकी देता है तो औरतें कहती हैं

कश्ती लालच ही के सबब डूबती है

लालच से काम बिगड़ता है

हया-दार के लिए ऐक चुल्लू काफ़ी है

ग़ैरत दिलाने के लिए कहते हैं

हल्वा खाने के दिन हैं

दाँत टूट चुके ही, बुढ़ापा आगया है बहुत बूढ़े आदमी की निसबत कहते हैं

साथ के लिए भात छोड़ा जाता है

अच्छे रफ़ीक़ के लिए अपने नफ़ा की परवाह नहीं की जाती

साथ के लिए भात छोड़ा जाता है

सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है

सावन के अंधे को हर तरफ़ हरा-भरा नज़र आता है, जो स्थिती दृष्टी में समा जाती है वही हमेशा सामने रहती है (चूँकि सावन का महीना ठीक वर्षा का मौसम का होता है और पेड़-पौधों पर हरियाली छाई रहती है अतः जो व्यक्ति इस महीने में अंधा होता है वो यही समझता रहता है कि हर तरफ़ यथापूर्व हरियाली होगी(

सब ऐक ही नाव के सवार हैं

सब की हालत एक ही जैसी हो तो कहते हैं

यही मार खाने के लच्छन हैं

ऐसी बातों पर इंसान पिटता है, इन्ही बातों पर पिटता है, इन्ही करतूतों से मार खाता है

नज़र-गुज़र के लिए

बुरी दृष्टी का प्रभाव दूर करने के लिए, दान-दक्षिणा के लिए, दान-पुण्य के लिए

जिस के लिए चोरी की वही कहे है चोर

जिस की ख़ातिर बदनाम हुए वही नफ़रत करता है

पूत के पाँव पालने में ही पहचाने जाते हैं

(किसी किये) बुराई भलाई शुरू ही में आसार से दरयाफ़त करली जाती है, नेक बुख़ती बदबख़ती का हाल बचपन या आग़ाज़ ही में हरकात-ओ-सकनात से खुल जाता है

ख़ुदा सब के लिए और बंदा अपने लिए

आदमी ख़ुदग़रज़ होता है, ख़ुदा सब का मुरब्बी-ओ-निगहबान होता है

ये जितना ज़मीन के ऊपर है उतना ही ज़मीन के नीचे है

इस मुफ़सिद, शरीर और फ़ित्ना अंग़ेज़ की निसबत कहते हैं जो बज़ाहिर छोटा या पस्ताकद हो

सूरज को क्या आर्सी ही ले के देखते हैं

जो बात ज़ाहिर हो उस की तशरीअ की ज़रूरत नहीं होती

कोल्हू के बैल को घर ही में है

ग़रीब मज़दूर को घर में मुसीबत रहती और नसीब की गर्दिश से ग़रीब हीराब-ओ-सरगरदां रहता है, मुसीबत के मारे को घर में भी आराम नहीं मिलता

अच्छों के अच्छे ही होते हैं

अच्छे आदमी की संतान और बाल-बच्चे भी अच्छे ही होते है, अच्छे कुल में अच्छे ही पैदा होते हैं

तौबा बड़ी सिपर है गुनहगार के लिये

प्रायश्चित्त एवं तौबा करने से गुनहगार सज़ा से बच जाता है, उसके लिए प्रायश्चित्त एवं तौबा बड़ी ढाल है

मैं मरूँ तेरे लिए, तू मरे वा के लिए

बेवफ़ा है, में इस पर जान देता हूँ मगर वो मेरी बजाय दूसरों पर तवज्जा देता है

जिस के लिए

पक्की बेरी के बेर खाने वाले हैं

बगै़र मेहनत-ओ-मशक़्क़त के गुज़र करने वाले के निसबत बोलते हैं

सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता दिखाई देता है

अगर कोई दौलतमंद, मुफ़लस हो जाये तो अमीरी की बूओ इस के दिमाग़ समझता है कि हर तरफ़ साइन है (चूँकि सावन का महीना ठीक वर्षा का मौसम का होता है और पेड़-पौधों पर हरियाली छाई रहती है अतः जो व्यक्ति इस महीने में अंधा होता है वो यही समझता रहता है कि हर तरफ़ यथापूर्व हरियाली होगी)

पेट के लिए

सब ऐक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं

सब एक जैसे हैं, इन में कोई फ़र्क़ नहीं

खाने कमाने के ढंग

(लाक्षणिक) किसी को मूर्ख बना कर पैसा बटोरने के हथकंडे या विधी

ख़ुदा के लिए मख़्सूस

(जीवित करने वाला) जिसे ख़ुदा के लिए विशिष्ट कर दिया गया हो (भेंट, नज़र, मन्नत)

हमेशा के लिए

उम्र भर के लिए, जीवन भर के लिए, सदा के लिए

ग़रज़ के लिए गधे को बाप बनाते हैं

हाथ कंगन के लिए क्या आरसी

'अक़्ल के पीछे सोंटा लिए फिरना

अक़ल काम दुश्मन होना, बे अकली की बातें करना

दवा के लिए मयस्सर नहीं

साथ के लिए भात चाहिए

'अक़्ल के पीछे डंडा लिए घूमना

अक़ल काम दुश्मन होना, बे अकली की बातें करना

यूँ ही के यूँ ही

ख़ुदा के लिए

ख़ुदा के लिए

भगवान के लिए, ईश्वर के लिए

साझे के चने, आँखें दुखते में भी खाने पड़ें

साझेदारी या शराकत का काम हर हालत में करना पड़ता है, शराकत का नुकसान फ़रीक़ैन को उठाना ही पड़ता है

टेस्ट के लिए अहल

खाने के क़ाबिल

हमेशा के लिए ख़ामोश हो जाना

मर जाना

क़दम-बोसी के लिए हाज़िर होना

दवा के लिए ढूँडो तो नहीं मिलती

बहुत नादिर या नाक़ाबिल-ए-हुसूल चीज़ के मुताल्लिक़ कहते हैं

चार पैसे के लिए

थोड़े माल और धन के वास्ते, थोड़ी सी दौलत के लिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में क़सम खाने ही के लिए है के अर्थदेखिए

क़सम खाने ही के लिए है

qasam khaane hii ke liye haiقَسَم کھانے ہی کے لِیے ہے

कहावत

क़सम खाने ही के लिए है के हिंदी अर्थ

  • दग़ाबाज़ लोग क़सम खाने की कुछ पर्वा नहीं करते, झूटों का मक़ूला है कि क़सम खाने कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता झूटी हो या सच्ची
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قَسَم کھانے ہی کے لِیے ہے کے اردو معانی

  • دغاباز لوگ قسم کھانے کی کچھ پروا نہیں کرتے، جھوٹوں کا مقولہ ہے کہ قسم کھانے کوئی فرق نہیں پڑتا جھوٹی ہو یا سچی

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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