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रुबा'ई

चार से मिश्रित, चार अंशों वाला, चतुश्चरण

रुबा'ई-गो

रुबाई कहने वाला, रुबाई लिखने वाला

रुबा'ई-ख़स्सी

वह रुबाई जिसके तीसरे मिसरे में क़ाफ़िया हो

बहर-ए-रुबा'ई

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में रुबा'ई के अर्थदेखिए

रुबा'ई

rubaa'iiرُباعی

स्रोत: अरबी

वज़्न : 112

बहुवचन: रुबा'इयात

टैग्ज़: शायरी काव्य शास्त्र

शब्द व्युत्पत्ति: र-ब-अ

रुबा'ई के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन

  • चार से मिश्रित, चार अंशों वाला, चतुश्चरण
  • चार-चार बार करके, (एक चरण के बजाय) चार चरण, चार गुना, चौगुना
  • (छंद) उर्दू और फ़ार्सी का एक छंद-विशेष जिसका मूल वज़्न 1 तगण 1 यगण एक सगण और एक मगण होता है (ऽऽ।, Iऽऽ, ॥ऽ, ऽऽ), इसके पहले दूसरे और चौथे पद में क़ाफ़िया होता है, कभी-कभी चारों ही सानुप्रास होते हैं, परंतु अच्छा यही है कि चौथा सानुप्रास न हो, काव्य की एक शैली जिस में चार पक्तियों में बात पूरी हो जाती है

विशेषण

  • जिसके चार भाग होंं,चार भागों वाला

समान ध्वनि के मिलते-जुलते शब्द

रुबाई

उचक ले जाने काम, छीन लेने का भाव, लेने वाला

English meaning of rubaa'ii

Noun, Feminine, Singular

  • four stages
  • four, one out of four, the fourth part
  • a stanza of four lines, a genre of poetry having four lines, a quatrain

Adjective

  • having four parts

رُباعی کے اردو معانی

اسم، مؤنث، واحد

  • چار سے مرکب، چار اجزا والا
  • چارچار بار کر کے، (ایک نوبت کے بجائے) چارنوبت، چہار چند، چوگنا
  • (عروض) بحر کے مُقَرَّر چوبیس اوزان میں سے کسی ایک یا زیادہ (تا چہار) وزن میں کہی ہوئی چار مصرعوں والی نظم جس کے پہلے دوسرے اور چوتھے مصرعوں والی نظم جس کے پہلے مصرعوں اور چوتھے مصرع میں قا فیہ ہو (تیسرے میں ہو یا نہ ہو)

صفت

  • جس کے چار حصے یا جز ہوں، چار اجزا والا

रुबा'ई से संबंधित रोचक जानकारी

रूबाई अरबी शब्द "रुबअ" जिसका अर्थ है चार। रूबाई उर्दू शायरी की उस विधा को कहते हैं जिसके चार मिसरों (पंक्तियों) में एक संपूर्ण विषय को प्रस्तुत किया जाता है। इसका जन्म ईरान में हुआ,उम्र ख़ैयाम की फ़ारसी रूबाइयात विश्व व्यापी लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी हैं, उर्दू में रूबाई फ़ारसी से आई है। यह विशेष 24 छंदों में कही जाती है, इसमें पहले, दूसरे और चौथे मिसरे में क़ाफ़िया लाना ज़रूरी है। रूबाई का चौथा मिसरा जैसे पंच लाइन होता है। रूबाई कहना एक नाज़ुक और मुश्किल कला है। जोश मलीहाबादी ने बहुत रूबाइयां कही हैं, लेकिन उनका कहना था: "रूबाई चालीस-पचास बरस के अभ्यास के बाद क़ाबू में आती है।" उनकी मशहूर रूबाई है: ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है सिर्फ़ एक तबस्सुम के लिए खिलता है ग़ुंचे ने कहा कि इस चमन में बाबा ये एक तबस्सुम भी किसे मिलता है रूबाई के विषय बहुत व्यापक हैं। उर्दू में आरंभ ही से शायरों ने इस विधा में कुछ कुछ अभ्यास किया। मिर्ज़ा अनीस व मीर दबीर ने मज़हबी और नैतिक विषयों पर रूबाइयां लिख कर इस विधा को विश्वास प्रदान किया। उसके बाद हाली और अकबर इलाहाबादी के नाम प्रमुख हैं जिन्होंने नैतिकता, समाजशास्त्र और राजनीति को अपनी रूबाइयों का विषय बनाया। फ़िराक़ गोरखपुरी ने "रूप" नाम से रूबाइयों के अपने संग्रह में श्रृंगार रस में डूबी रूबाइयां लिखीं जो हिंदुस्तानी औरत और समाज के रंगारंग अल्बम हैं।

लेखक: अज़रा नक़वी

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