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जाऊँगा

will go

ख़ाली हाथ क्या जाऊँ एक संदेसा लेता जाऊँ

स्पष्ट बात न कहना, ٖउस व्यक्ति के संबंध में बोलते हैं जो सभा में हर दिन एक नया चुटकुला या ढकोसला छोड़ता है

कहाँ जाऊँ

क्या ईलाज करूं, क्या तदबीर करूं

वारी हो कर मर जाऊँ

(महिला) तुम्हारे लिए बलिदान दे दूँ , मुसीबत उठाने वाली हो जाओं, अत्यंत मिन्नत, समाजत का शब्द है

क्या मुँह ले कर जाऊँ

(शर्मिंदगी के मौक़ा पर मुस्तामल) किस मुंह से जाऊं, मुंह दिखाते श्रम आती है

बली जाऊँ

क़ुर्बान हो जाऊं, वारी जाऊं

क़ुर्बान जाऊँ

सदक़े हो जाऊं निसार होजाऊं (तंज़न-ओ-ख़ुशा मदन दोनों तरह मुस्तामल)

वारी जाऊँ

(स्त्री की भाषा) सदक़े जाऊँ, क़ुर्बान हूँ

अल जाऊँ बल जाऊँ जल्वे के वक़्त टल जाऊँ

(लफ़ज़न) सदक़े हो जाऊं क़ुर्बान हो जाऊं लेकिन रूनुमाई के वक़्त (जब कि कुछ देना पड़ता है) मौक़ा से हिट जाऊं, (मुरादन) ज़बानी मुहब्बत जताते हैं मगर वक़्त पर काम नहीं आते

कहाँ जाऊँ, चूहे का बिल नहीं मिलता

सख़्त नाचारी ज़ाहिर करने को कहते हैं, कभी भी पनाह नहीं मिलती

मेरा बस चले तो तुझे कच्चा खा जाऊँ

अत्यधिक क्रोध की हालत में कहते हैं

पर लग जाएँ और उड़ कर पहुँच जाऊँ

कहीं जाने की बहुत ज़्यादा ख़ाहिश हो तो कहते हैं

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ایک ماما سحری کھا لیتی تھی روزہ نہ رکھتی تھی ، ایک دن مالک نے پوچھا تو یہ جواب دیا ، یعنی دین کی مطلب کی بات مان لی اور تکلیف کی بات چھوڑ دی.

आज न मुवाकिल मर जाऊँगा

बहुत परेशानी और कठिनाई की स्थिति में कहा जाता है

ज़मीन शक़ हो जाए और मैं समा जाऊँ

अधिक कष्ट की स्थिति में कहते हैं

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक चराऊँ न बाली खाऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

मरती मर जाऊँ

किसी क़ीमत पर ख़िलाफ़-ए-मर्ज़ी बात को तस्लीम ना करूं, तमाम मुश्किलात और ख़तरात के बावजूद अपनी बात पर अड़ी रहूं

वारी वारी जाऊँ

(अविर) रुक : वारी जाऊं , सदक़े जाऊं

किधर जाऊँ क्या करूँ

कोई तदबीर समझ में नहीं आती (मजबूरी के मौक़ा पर बोलते हैं)

ज़मीन फटे और समा जाऊँ

अत्यधिक लज्जित एवं जीवन उचाट हो जाने के स्थान पर बोलते हैं

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक खाऊँ न बाली चुराऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

न्यारे चोले बल बल जाऊँ, आधा खाती सारा खाऊँ

अपनी कमाई से ख़र्च करना मुश्किल है

न्यारे चोले बल बल जाऊँ, सारा खाती आधा खाऊँ

औरत अलैहदा घर रखना चाहती है । चाहे ग़ुर्बत में रहे

भैंस कहे गुन मेरा पूरा मेरा दूध पी होवे सूरा, जिस के घर में बँध जाऊँ दूध दही की नाल बहाऊँ

भैंस की प्रशंसा है कि जिस घर में भैंस होती है वहाँ दूध दही की कमी नहीं होती

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जाऊँगा

will go

ख़ाली हाथ क्या जाऊँ एक संदेसा लेता जाऊँ

स्पष्ट बात न कहना, ٖउस व्यक्ति के संबंध में बोलते हैं जो सभा में हर दिन एक नया चुटकुला या ढकोसला छोड़ता है

कहाँ जाऊँ

क्या ईलाज करूं, क्या तदबीर करूं

वारी हो कर मर जाऊँ

(महिला) तुम्हारे लिए बलिदान दे दूँ , मुसीबत उठाने वाली हो जाओं, अत्यंत मिन्नत, समाजत का शब्द है

क्या मुँह ले कर जाऊँ

(शर्मिंदगी के मौक़ा पर मुस्तामल) किस मुंह से जाऊं, मुंह दिखाते श्रम आती है

बली जाऊँ

क़ुर्बान हो जाऊं, वारी जाऊं

क़ुर्बान जाऊँ

सदक़े हो जाऊं निसार होजाऊं (तंज़न-ओ-ख़ुशा मदन दोनों तरह मुस्तामल)

वारी जाऊँ

(स्त्री की भाषा) सदक़े जाऊँ, क़ुर्बान हूँ

अल जाऊँ बल जाऊँ जल्वे के वक़्त टल जाऊँ

(लफ़ज़न) सदक़े हो जाऊं क़ुर्बान हो जाऊं लेकिन रूनुमाई के वक़्त (जब कि कुछ देना पड़ता है) मौक़ा से हिट जाऊं, (मुरादन) ज़बानी मुहब्बत जताते हैं मगर वक़्त पर काम नहीं आते

कहाँ जाऊँ, चूहे का बिल नहीं मिलता

सख़्त नाचारी ज़ाहिर करने को कहते हैं, कभी भी पनाह नहीं मिलती

मेरा बस चले तो तुझे कच्चा खा जाऊँ

अत्यधिक क्रोध की हालत में कहते हैं

पर लग जाएँ और उड़ कर पहुँच जाऊँ

कहीं जाने की बहुत ज़्यादा ख़ाहिश हो तो कहते हैं

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ایک ماما سحری کھا لیتی تھی روزہ نہ رکھتی تھی ، ایک دن مالک نے پوچھا تو یہ جواب دیا ، یعنی دین کی مطلب کی بات مان لی اور تکلیف کی بات چھوڑ دی.

आज न मुवाकिल मर जाऊँगा

बहुत परेशानी और कठिनाई की स्थिति में कहा जाता है

ज़मीन शक़ हो जाए और मैं समा जाऊँ

अधिक कष्ट की स्थिति में कहते हैं

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक चराऊँ न बाली खाऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

मरती मर जाऊँ

किसी क़ीमत पर ख़िलाफ़-ए-मर्ज़ी बात को तस्लीम ना करूं, तमाम मुश्किलात और ख़तरात के बावजूद अपनी बात पर अड़ी रहूं

वारी वारी जाऊँ

(अविर) रुक : वारी जाऊं , सदक़े जाऊं

किधर जाऊँ क्या करूँ

कोई तदबीर समझ में नहीं आती (मजबूरी के मौक़ा पर बोलते हैं)

ज़मीन फटे और समा जाऊँ

अत्यधिक लज्जित एवं जीवन उचाट हो जाने के स्थान पर बोलते हैं

बटिया आऊँ बटिया जाऊँ, खेतक खाऊँ न बाली चुराऊँ

बहुत सत्यनिष्ठा वाला हूँ

न्यारे चोले बल बल जाऊँ, आधा खाती सारा खाऊँ

अपनी कमाई से ख़र्च करना मुश्किल है

न्यारे चोले बल बल जाऊँ, सारा खाती आधा खाऊँ

औरत अलैहदा घर रखना चाहती है । चाहे ग़ुर्बत में रहे

भैंस कहे गुन मेरा पूरा मेरा दूध पी होवे सूरा, जिस के घर में बँध जाऊँ दूध दही की नाल बहाऊँ

भैंस की प्रशंसा है कि जिस घर में भैंस होती है वहाँ दूध दही की कमी नहीं होती

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