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जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब कोई अपने आपको ख़तरे में डाल दिया हो, तो उसे परिणाम से डरना नहीं चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो, यदि कठिन कार्य हाथ में ले लिया है तो कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए, कठिन कार्य शुरू करने पर कठिनाई तो सहन करनी ही पड़ती है

ओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब स्वयं को ख़तरे में डाल दिया फिर परिणाम की क्या चिंता, जब जान-बूझ कर ख़तरा मोल लिया तो आने वाली समस्याओं की क्या परवाह

ओखल सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

ओखल में सर दिया तो धमकों से क्या ख़तरा

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

जब हाथ में लिया कासा तो रोटियों का क्या साँसा

जब निर्लज्जता अपनाई तो रोटी की क्या कमी

दिल में नहीं डर तो सब की पगड़ी अपने सर

यदि दिल में किसी बात का डर नहीं तो आदमी किसी की परवाह नहीं करता, दिल में भय या सम्मान न हो तो मनुष्य निर्भय एवं धृष्ट हो जाता है

पाँव से लगी तो सर में बुझी

घर में दिया तो मस्जिद में दिया

पहले परिवार के सदस्यों से व्यवहार होना चाहिए फिर बाहर वालों से, पहले अपना घर संभालना चाहिए फिर बाहर

तलवों से लगी तो सर में जा के बुझी

रक्खा तो चश्मों से , उड़ा दिया तो पश्मों से

अगर मेहरबानी की (नौ कर रखा) तो उन की इनायत है, नहीं तो कुछ पर्वा नहीं

कर तो डर नहीं , ख़ुदा के ग़ज़ब से डर

रुक : कर तो डर ना कर तो डर

अब तो हूँ मैं ऊनी ऊनी जब होंगी सब से दूनी

अभी क्या है, अभी तो थोड़ी ख़राबियाँ हैं, आगे चल कर खुल खेलेगी

जब आँखें हुईं चार तो दिल में आया प्यार, जब आँखें हुईं ओट दिल में आई खोट

जिस वक़्त आमने सामने हों तो प्रेम जताते हैं मगर अनुपस्थित में कोई परवाह नहीं होती बल्कि बुराई सूझती है

गाय जब दूब से सुलूक करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला नुक़्सान उठाता है

तुम तो जब माँ के पेट से भी नहीं निकले होगे

इस मौक़ा पर बोलते हैं जब ये जतलाना मंज़ूर हो कि ये बहुत पुरानी बात है, तुम्हारे पैदा होने से पहले की बात है

कर तो कर नहीं तो ख़ुदा के ग़ज़ब से डर

कर तो कर , नहीं तो ख़ुदा के ग़ज़ब से डर

रुक : कर तो डरना तो डर

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे

जो वस्तु जिस काम के लिए बनाई गयी है वह काम उसी से निकलता है

जब तीर छूट गया तो फिर कमान में नहीं आ सकता

जब कोई बात मुंह से निकल जाये तो वापिस आसकती

गाय जब दूब से दोस्ती करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला नुक़्सान उठाता है

जब पेट में खदिया लगी मीठा और सलोना क्या

भूक में जो मिले मीठे और सलोने से कुछ काम नहीं, ज़रूरत ऐसी होती है

कर तो डर न , कर तो ख़ुदा के ग़ज़ब से डर

रुक : कर तो तोड़ ना कर तो डर

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

ख़ुदा जब किसी को नवाज़ता है तो इस से सलाह मशवरा नहीं करता

अल्लाह जिस तरह चाहे और जब चाहे अपने बंदों पर लुतफ़-ओ-करम की बारिश कर देता है

पाँचों उँगलियाँ घी में नहीं तो सर कढ़ाई में

अगर काम हसब दिलख़वाह किया तो इनाम मिलेगा नहीं तो सज़ा मिलेगी

शर' में क्या शर्म

शर' में शर्म क्या

साफ़ बात कहने या जायज़ काम करने में पिस-ओ-पेश ना करना चाहिए

सैंय्याँ भए कुतवाल अब डर क्या है

रुक : सी्यां भए कुतवाल अब डर किया है

घोड़ा घास से दोस्ती करे तो खाएगा क्या

घोड़ा घास से यारी करे तो खाएगा क्या

घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या

रुक : घोड़ा घास से यारी या आश्नाई करे तो भूका मरे

जब पर्जा नहीं तो राजा कहाँ

हाकिम को ज़ुलम नहीं करना चाहिए, अगर रईयत ना रहे तो हाकिम कहाँ रह सकता है

जब चने न थे तो दाँत थे , जब चने हुए तो दाँत नहीं

रुक : जब चुने थे अलख , बेवक़त किसी चीज़ का हासिल होना

दिल लगा मेंढकी से तो पद्मिनी क्या चीज़ है

जहाँ मुहब्बत हो वहाँ कोई कमी नज़र नहीं आती

सौ लगें तो क्या , हज़ार लगें तो क्या

सख़्त बेशरम और ढीट है

घोड़ा घास से आश्नाई करेगा तो खाएगा क्या

मुआमले की जगह मुरव्वत बरतने से नफ़ा नहीं होता, कोई शख़्स अगर अपने काम के नफ़ा की कुछ पर्वा ना करे तो गुज़ारा नामुमकिन है , मज़दूर मज़दूर ना ले तो भूका मर जाये , अपना मतलब कोई नहीं छोड़ता

जोगी जुगत जाने नहीं गबरू में कपड़े रंगे तो क्या हुआ

सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से नावाक़िफ़ हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं, ज़ाहिर आरा की निसबत बोलते हैं

जोगी जुगत जाने नहीं गबरू में कपड़े रंगे तो क्या होगा

सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से नावाक़िफ़ हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं, ज़ाहिर आरा की निसबत बोलते हैं

जब-से

उस वक़्त से, जिस वक़्त से, उस समय से, तब से

जब कमर में ज़ोर होता है तो मदार साहब भी देते हैं

बेरों फ़क़ीर वन की दुआ का तब ही असर होता है जब अपने आप भी कोशिश की जाये

बातों से डर जाना

धमकी में आना

मुल्ला न होगा तो क्या मस्जिद में अज़ाँ न होगी

तलवों से लागना सर में बुझना

ग़ुस्से से आग बगूला हो जाना, बू अफ़्रोख़्ता हो जाना

पाँव से लगी सर में बुझी

मैं ने क्या भुस मिला दिया था

मैंने किया ुबरा किया था जो इतने नाराज़ हुए, मेरे वाजिबी कहने को क्यों ुबरा जाना था, मेरे कहने का क्यों ुबरा माना था

मैं ने क्या बस मिला दिया था

मैंने किया ुबरा किया था जो इतने नाराज़ हुए, मेरे वाजिबी कहने को क्यों ुबरा जाना था, मेरे कहने का क्यों ुबरा माना था

ज़िंदा है तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

ज़िंदा रही तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

जब सब पन होरे तो पन्हारी कमाए

हया-ओ-श्रम वग़ैरा छोड़े तो इस काम में शौहरत पाए

पाँव से लगी सर में बुझी

(हसद और ग़ुस्से के मौक़ा पर) तन बदन में आग लग गई

सर से लगना पाँव में बुझना

मुकम्मल जल बुझना, राख हो जाना, , शुरू से आख़िर तक एक कैफ़ीयत में मुबतला रहना

सूप बोले तो बोले छलनी भी क्या बोले जिस में बहत्तर छेद

बेऐब और ऐबदार या बद और नेक का मुक़ाबला बेमानी होता है, जो ख़ुद कमज़ोरियां रखता हो वो दूसरों के सुधार में क्या हिस्सा लेगा

गू में कौड़ी गिरे तो दाँतों से उठाए

बहुत हरीस और बख़ील आदमी की निसबत कहते हैं, बहुत कंजूस है, फ़ायदे के लिए ज़लील काम करने पर भी तैय्यार है

क्या मक्खी ने छींक दिया

अर्थात क्या कोई अपशगुन हो गया, क्या काम न करने का कोई बहाना हाथ आ गया, क्यों काम नहीं करना चाहते

तलवों से भड़कना सर में बुझना

रुक : तलवों से लगना सर में जाके बुझना

क्या बिल्ली ने छींक दिया

तुम इस काम से क्यों बाज़ रहे (बाअज़ लोग छींक को बदशगुनी और नहूसत ख़्याल करते हैं)

ख़ुदा से डर

अल्लाह का ख़ौफ़ करो

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर के अर्थदेखिए

जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

jab okhlii me.n sar diyaa to dhamko.n se kyaa Darجَب اوکْھلی میں سَر دیا تو دَھمْکوں سے کیا ڈَر

कहावत

जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर के हिंदी अर्थ

  • जब कोई अपने आपको ख़तरे में डाल दिया हो, तो उसे परिणाम से डरना नहीं चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो, यदि कठिन कार्य हाथ में ले लिया है तो कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए, कठिन कार्य शुरू करने पर कठिनाई तो सहन करनी ही पड़ती है
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English meaning of jab okhlii me.n sar diyaa to dhamko.n se kyaa Dar

  • when one has exposed oneself to danger, one should not fear the consequences, come what may, whatever the consequences

جَب اوکْھلی میں سَر دیا تو دَھمْکوں سے کیا ڈَر کے اردو معانی

  • مشکل کام ہاتھ میں لیا تو مشکلات کا سامنا کرنا ہی پڑے گا

जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर के पर्यायवाची शब्द

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