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थीं

थीक

थीस

से

थी-बाहो

थीकरा

थीकर

थीबाव

थीगलियाँ भरना

दौड़ना, भागना

आँख में थी शर्म दिल की थी नर्म

औरतें उस जगह कहती हैं जहाँ न मानने वाली बात कोई मुरव्वत से मान ले

तक़्दीर यूँही थी

नुक़्सान के मौक़ा पर दिलासा देने के लिए कहते हैं

भरा कनाला छाने थी, फागुन को नहीं जाने थी

आरंभ में जो इतना व्यय किया ऐसे दिनों की आशा न थी

क्या ख़ाक लुटी थी

क्या बाँटी गई थी

तक़दीर यूँ ही थी

क़िस्मत में यूं ही लिखा था, ऐसा ही होना था, (नुक़्सान के मौक़ा पर तसल्ली के लिए कहते हैं

भला ऐसी बात थी

ऐसा नहीं हो सकता, यह संभव न था, ये साहस न थी

किसी की रूह प्यासी थी

जब पानी का भरा हुआ घड़ा या मटका ख़ुदबख़ुद टूट जाये तो ये फ़िक़रा ज़बान पर लाते हैं

रूह किसी की प्यासी थी

(अविर) घड़ा टूट जाये तो कहती हैं

सुब्ह किस की शक्ल देखी थी

जब कोई काम बिगड़ जाये या खिलाफ-ए-मर्ज़ी हो या कोई नागहानी सदमा पहुंचे तो ये फ़िक़रा कहते हैं, मतलब ये होता है कि सुबह जागने के बाद सब से पहले किस मनहूस के चेहरे पर नज़र पड़ी थी जिस की नहूसत का ये असर हुआ है

भला ऐसी क्या बात थी

यह कौन सी मुश्किल बात थी

क्या क़यामत की घड़ी थी

बहुत परेशानी का समय था, अधिक मुसीबत का वक़्त था

ज़ालिम की रस्सी दराज़ थी

जो ज़ुलम-ओ-जोर करता है इस की उम्र ज़्यादा होती है

ये हवा बैठी भी न थी

अभी ये बात चल रही थी, अभी ये सिलसिला समाप्त नहीं हुआ था

तुमहारी ओर को आँख लगी हूई थी

तुम से उम्मीद बंधी थी, तुम ही से आस लगी हुई थी

रोने को थी ही इतते में आ गए भैया

रोने के लिए बहाना मिल गया, कोई काम पहले करने को थे कि बहाना भी मिल गया

सोती थी पर काता नहीं जो काता तो पाँच पाव

सुस्त औरत पर तंज़ है कि अव़्वल तो काम नहीं करती अगर करती है तो बराए नाम

भला ऐसी मेरी क्या खाट कटी थी

क्या मजबूरी है , मुझे ऐसी क्या ज़रूरत थी

क्या रात थी

क्या उम्दा मुबारक और मसऊद शब थी जिस का अब अफ़सोस आता है

आते का मुँह देखती थी जाते की पीठ

प्रतीक्षा की बेताबी ज़ाहिर करने के अवसर पर प्रयुक्त

पहले तो थी मैं औनी पौनी , अब हुई सौ से दूनी

जब किसी की नाक़द्री के बाद क़दर हो तो ये कहते हैं

वो दिन गए जो भैंस पकौड़े हगती थी

उस व्यक्ति के लिए कहते हैं जिसने बेकार में ख़र्च करना छोड़ दिया हो, बेकार में ख़र्च करने का ज़माना बीत गया

थाली गिरी झंकार हुई , क्या ख़बर भरी थी या ख़ाली

ख़ाह हक़ीक़त कुछ भी हो मगर बदनामी हो जाये तो उसे कौन रोक सकता है

सारी रामायण पढ़ गए सुन के पूछा सीता किस की जोरू थी

रुक : सारी ज़ुलेख़ा सुन ली और ना मालूम हुआ कि ज़ुलेख़ा औरत थी या मर्द

सारी रात कहानी सुनी सुब्ह को पूछे ज़ुलैख़ा 'औरत थी या मर्द

उस व्यक्ति के संबंध में कहते हैं जो ध्यान से बात न सुने और फिर उसका मतलब ग़लत समझे

क्या चली थी

क्या ज़रूरत थी

क्या बात थी

कोई बड़ी बात न थी, मामूली सी बात थी, बस एक छोटी सी बात

इतनी ही थी

क़िस्मत में इतने ही दिन जीता था, मुक़द्दर में उतनी ही उम्र थी

क्या कम थी

पहले ही बहुत थे, काफ़ी था, अब और हो गया (ज़्यादती ज़ाहिर करने के मौक़ा पर मुस्तामल)

वारी गई थी

(अविर) वो कौन है जो बोले या दख़ल दे नीज़ वो किसी काम की नहीं

झूट बोलने वालों को पहले माैत आती थी अब बुख़ार भी नहीं आता

कलयुग का समय है, झूट बोलने वालों को कोई हानि नहीं पहुँचती

सारी रामायण पढ़ गए लेकिन मा'लूम नहीं कि सीता 'औरत थी या मर्द

रुक : सारी ज़ुलेख़ा सुन ली और ना मालूम हुआ कि ज़ुलेख़ा औरत थी या मर्द

सारी ज़ुलैख़ा सुन ली और ये न मा'लूम हुआ कि ज़ुलैख़ा 'औरत थी कि मर्द

बूओरा क़िस्सा सुनने के बाद जब कोई उसी किसे के मुताल्लिक़ बेतुका सवाल कर बैठे तो इस से कहते हैं

नसीब के बलिया , पकाई थी खीर हो गया दलिया

किसी काम के बिगड़ जाने पर कहते हैं

सैफ़ तो पट पड़ी थी पर नीमचा काट कर गया

जिस पर भरोसा था इस से तो काम ना निकला बल्कि एक अदना वसीले से निकल आया , जिस से उम््ीद ना थी इस से मतलब बरारी हुई

सैफ़ तो पट पड़ी थी मगर नीमचा काट कर गया

जिस पर भरोसा था इस से तो काम ना निकला बल्कि एक अदना वसीले से निकल आया , जिस से उम््ीद ना थी इस से मतलब बरारी हुई

इतनी ही लिखी थी

क़िस्मत में इतने ही दिन जीता था, मुक़द्दर में उतनी ही उम्र थी

इस से क्या हासिल कि शाह जहाँ की दाढ़ी बड़ी थी या 'आलम-गीर की

अत्यधिक वाद विवाद व्यर्थ होता है, अनावश्यक चर्चा से क्या लाभ

धोती थी दो पाँव, धोने पड़े चार पाँव

विवाह के पश्चात बहुत काम करना पड़ता है, स्त्री का विवाह हो जाए तो दुगना काम करना पड़ता है

सत मान के बकरा लाए , कान पकड़ सर काटा , पूजा थी सो मालन ले गई , मूरत को धर चाटा

जो भेंट की बुत पर चढ़ाते हैं वो कमीने लोग खा जाते हैं

शेरशाह की दाढ़ी बड़ी थी या सलीम शाह की

बेकार बहस अथवा तकरार के अवसर पर बोलते हैं

पकाई थी खीर हो गया दलिया

काम बिगड़ गया

हवा और थी पानी और था

दूसरा ज़माना था, ये सूरत-ए-हाल ना थी, हालात और अंदाज़ मुख़्तलिफ़ थे

अल्लाह अल्लाह करती थी, घी के पापड़ तलती थी, पापड़ हुए तमाम, बेटा करे आराम

बच्चे को थपकने और सुलाने की लोरी

ज़ुलैख़ा तो सारी पढ़ गए पर ये न जाना कि वो 'औरत थी या मर्द

किसी बात या घटना को प्रारंभ से अंत तक सुनना या पढ़ना किन्तु इस पर बिल्कुल ध्यान न देना

शोर-ओ-ग़ुल ऐसा कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई न देती थी

आई थी आग लेने बन गई घर की मालिक

सिंथी

(सोनारी) माँग के दोनों तरफ़ माथे के बालों की पट्टियों के किनारे किनारे लगाने का सादा या जड़ाऊ बना हुआ ज़ेवर जो ज़ंजीर की लड़ी या बेड़ी की शक्ल का होता है कोई मोती की लड़ियों का भी होता है, मांग के दोनों तरफ़ कनपटियों तक झालर की तरह लटका रहता है इसके बीच में एक टी

आई थी आग को रह गई रात को

बद चलन है, अनैतिकता के लिए ज़रा सा बहाना काफ़ी है

चूतिया-पंथी

बेवक़ूफ़ी, मूर्खता, बुद्धूपन, चूतियापना, नादानी

ऊता-पंथी

कबीर-पंथी

कबीर पंथ का सदस्य या इस के सिद्धांतों को माननेवाला

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में थी के अर्थदेखिए

थी

thiiتھی

वज़्न : 2

English meaning of thii

Verb

  • was

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