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हाथ कंगन को आरसी क्या ज़रूर

हाथ कंगन को आरसी क्या

(शाब्दिक) हाथ के कंगन को देखने के लिए आईने की ज़रूरत नहीं होती, अर्थात: जो बात ज़ाहिर हो उसके खोजने करने की क्या ज़रूरत है, जो चीज़ आँखों के सामने हो उसको क्या बयान करना

हाथ कंगन के लिए क्या आरसी

हात कंगन को आरसी क्या

जो कुछ ज़ाहिर है उसे बयान करने की ज़रूरत नहीं होती (रुक : हाथ कंगन को आरसी किया)

हाथ-कंगन

बतौर ज़ेवर औरतों के हाथ में पहनने के कड़े

हाथ देखन को आरसी क्या

रुक : हाथ कंगन को आर सी किया (है

आरसी तो हाथ में लो

रुक : आरसी तो देखो

नंगे को क्या नंग , काले को क्या रंग

बेग़ैरत को क्या श्रम आए जैसे कि काले मुँह वाले को अपने रंग के मानद पड़ने का क्या डर

क्या काँटों में हाथ पड़ता है

क्या ऐब लगता है, क्या नुक़्सान होता है

हाथ को हाथ नहीं सूझता

अंधेरा घुप्प है।(फ़िक़रा) वो अंधेरा है कि हाथ को हाथ नहीं सुझाई देता।

भूका को रूखा सूखा क्या और नींद को क्या बिछौना

रुक : भूक को क्या रूखा और नींद को क्या तकिया

अंधे को अंधा रास्ता क्या बताए

जो खुद ही भटका हुआ है वह दूसरों का नेतृत्व क्या करेगा

भूखे को क्या रूखा और नींद को क्या तकिया

ज़रूरत के वक़्त जो मयस्सर आजाए ग़नीमत है

इस को क्या कीजिए

अजीब बात है (इज़हार हैरत के मौक़ा पर मुस्तामल)

इस को क्या कहते हैं

अजीब बात है (इज़हार हैरत के मौक़ा पर मुस्तामल)

ख़ाली हाथ क्या जाऊँ एक संदेसा लेता जाऊँ

स्पष्ट बात न कहना, ٖउस व्यक्ति के संबंध में बोलते हैं जो सभा में हर दिन एक नया चुटकुला या ढकोसला छोड़ता है

इस को क्या कहिए

अजीब बात है (इज़हार हैरत के मौक़ा पर मुस्तामल)

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

۔मिसल।(ओ)जब गदाईआख़तयार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार कर ली तो पेट पालने की क्या फ़िक्र

भूक को भोजन क्या और नींद को बिछोना क्या

ज़रूरत पर जो मिले वही ग़नीमत है

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ को हाथ नहीं सुझाई देता

हाथ को हाथ सुझाई नहीं देना

बहुत अंधेरा होना , इंतिहाई तारीकी होना

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा

जब गदाई इख़तियार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

जब हाथ में लिया कासा तो रोटियों का क्या साँसा

जब निर्लज्जता अपनाई तो रोटी की क्या कमी

हाथ को हाथ सूझने से रहना

रुक : हाथ को हाथ सुझाई ना / नहीं देना

ख़सम क्या सुख सहने को या पेट से लग कर रोने को

हरकाम फ़ायदा की उम््ीद पर किया जाता है अगर फ़ायदा ना हो अबस है

ख़सम क्या सुख सहने को या पटी से लग कर रोने को

हरकाम फ़ायदा की उम््ीद पर किया जाता है अगर फ़ायदा ना हो अबस है

ऊँघते को सो जाते क्या देर

जिस बात के अस्बाब मौजूद हैं इस को वजूद में आते क्या देर लगती है

मुसहफ़-ए-आरसी

माँ डाएन हो तो क्या बच्चों ही को खाएगी

बुरा इंसान भी अपनों का लिहाज़ करता है, अपनों को कोई नक्साक् नहीं पहुंचाता चाहे ग़ैरों से कैसा सुलूक करे

ईंडवी का कंगन

कलाई में पहनने का वो स्वर्ण कड़ा जो एंडवी का हमशकल गढ़ा हुआ होता है

किसी को क्या

किसी का क्या नुक़्सान है, किसी का क्या ताल्लुक़ है

सूरज को क्या आर्सी ही ले के देखते हैं

जो बात ज़ाहिर हो उस की तशरीअ की ज़रूरत नहीं होती

आरसी-मुसहफ़

मुसलमानों के बीच विवाह की रस्म जिसमें दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे के चेहरे को एक दर्पण में देखते हैं

गंगा नहाए क्या फल पाए, मूँछ मुँडाए घर को आए

व्यंग है कि गंगा में नहाने से क्या होता है केवल मूँछें मुँड जाती हैं

हाथ से दूसरे हाथ को ख़बर न हो

किसी को कानों कान ख़बर नहप हो कि क्या दिया और किस को दिया

क्या ख़ूब सौदा नक़्द है इस हाथ दे उस हाथ ले

जैसा करोगे वैसा भरोगे, हर कार्य का परिणाम निकल कर रहता है, इस दुनिया में हर काम का बदला तुरंत मिलता है

कुत्ते को मस्जिद से क्या काम

बुरे आदमी को नेक काम से कोई ताल्लुक़ नहीं होता

छलनी क्या कहे सोप को कि जिस में नो सौ छेद

बेअमल इंसान के मुताल्लिक़ कहते हैं जो दूसरों को नसीहत करता हो और ख़ूब उयूब में मुबतला हो

माँ डाएन हो गई तो क्या बच्चों ही को खाएगी

बुरा इंसान भी अपनों का लिहाज़ करता है, अपनों को कोई नक्साक् नहीं पहुंचाता चाहे ग़ैरों से कैसा सुलूक करे

सब्ज़ सब्ज़ क्या है , 'आशिक़ों को रवा है

भंगड़ भंग पीते वक़्त कहते हैं कि सबज़ रंग की चीज़ जायज़ है

हकीम को क़ारूरे से क्या लाज

अपने बेटे से श्रम नहीं करनी चाहिए

नौकर को क्या 'उज़्र है

नौकर को सिवाए इताअत के कोई उज़्र नहीं , नौकर कोई उज़्र नहीं कर सकता उसे इताअत करनी पड़ती है

हुमायूँ को हाथ से न देना

हौसला ना हारना

हाथ को हाथ न सूझना

रुक : हाथ को हाथ सुझाई ना देना

मिट्टी को हाथ लगाएँ तो सोना हो जाए

रुक : मिट्टी में हाथ डाले तो सोना हो जाये

जिस का बनिया यार उस को दुश्मन क्या दरकार

बनीए की दग़ा बाज़ी मशहूर है

बनिया जिस का यार उस को दुश्मन क्या दरकार

बनिया दोस्त बिन कर सौदा क़र्ज़ दे दे कर फ़क़ीर कर देता है, ख़ुदग़रज़ आदमी अपने दोस्त को भी अपने फ़ायदे के लिए तबाह कर देता है

आरसी में मुँह तो देखो

रुक: आरसी तो देखो

हाथ पाँव बचाइए मूज़ी को टरख़ाइए

हिक्मत-ए-अमली या मक्कारी से काम लेना चाहिए जिस से दुश्मन को कुछ ज़रर पहुंचे और ख़ुद महफ़ूज़ रहें

मियाँ कमाते क्या हो एक से दस, सास नंद को छोड़ दो, हमें तुम्हें बस

जो कुछ तुम कमाते हो वो हमारे लिए बहुत है, सास-नंद को छोड़ कर अलग हो जाओ

ख़ुदा को क्या मुँह दिखाओगे

अल्लाह पाक को क्या जवाब दोगे

किसी को क्या पड़ी है

किसी को क्या ग़रज़ या पर्वा है

हम को यार की यारी से काम , यार की बातों से क्या काम

अपने काम से काम रखना, अपना फ़ायदा हासिल करना, दूसरे की नुक़्सान की पर्वा ना करना, अपना उल्लू सीधा करना

भूका को सूखा क्या

भूक में सूखी हुई रोटी भी नेअमत होती है

सोने के कंगन

(संकेतात्मक) बहुमूल्य चीज़, अधिक क़ीमती चीज़

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हाथ कंगन को आरसी क्या ज़रूर के अर्थदेखिए

हाथ कंगन को आरसी क्या ज़रूर

haath kangan ko aarsii kyaa zaruurہاتھْ کَنْگَن کو آرْسی کیا ضَرُور

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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