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हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

बड़ी नाक़द्री करना

कोई कौड़ी के दो बेर भी हाथ से न खाए

सख़्त ज़लील-ओ-बेवुक़त है

अद्धी के बेर भी उस के हाथ के न खावे

बड़ा ज़लील शख़्स है

आधी के बबर भी कोई उस के हाथ से न खावे

किसी से बहुत ज़्यादा कराहत और नफ़रत के मौक़ा पर इस की तहक़ीर के लिए मुस्तामल

तेरे तोड़े तो मैं बेर भी न खाऊँ

(ओ) मुझे तुझ से नफ़रत है यानी तो अगर बेरों को छोले तो में खाऊं

गीदड़ के कहने से बेर नहीं पकते

हमारी बेरी में भी बेर लगेंगे

कभी हम से भी तुम को काम पड़ेगा

साजन हम तुम ऐक हैं देखत के हैं दो, मन से मन को तौल दो मन कदी न हो

हम तुम असल में एक हैं भले ही दो दिखाई देते हैं

एक हाथ बिखेरो, दो से समेटो

कोई काम ख़राब हो जाए तो बहुत प्रयास के बाद ठीक होता है

हाथ चाट-चाट के खाना

मज़े ले-ले के खाना

भाप भी मुँह से न निकालना

अत्यंत गोपनीयता से काम लेना, बहुत गोपनीयता बरतना

बद बदी से न जाए तो नेक नेकी से भी न जाए

चाहे बुरा आदमी अपनी बुराई से बाज़ ना आए मगर नेक को अपनी नेकी नहीं छोड़ना चाहिए

वो भी ऐसे गए जैसे गधे के सर से सींग

जाते हुए नज़र नहीं आए, बहुत जल्द चले गए, बिलकुल ग़ायब होगए (हिंदूओं का मानना है कि पहले गधे के सर पर सींग और घोड़ों के पर हुआ करते थे

आँधी के बेर

जान जाए ख़राबी से हाथ न उठे रकाबी से

बहुत लालची या पेटू आदमी की निसबत बोलते हैं

हाथ से दूसरे हाथ को ख़बर न हो

किसी को कानों कान ख़बर नहप हो कि क्या दिया और किस को दिया

तुम तो जब माँ के पेट से भी नहीं निकले होगे

इस मौक़ा पर बोलते हैं जब ये जतलाना मंज़ूर हो कि ये बहुत पुरानी बात है, तुम्हारे पैदा होने से पहले की बात है

दो-चार के हाथ जाना

(किसी शैय का) मुस्तामल होजाना

मौक़ा' हाथ से न देना

समय पर लाभ उठाना, अवसर को हाथ से न खोना

अपने सूई न जाने दो, दूसरे के भाले कोंचो

ख़ुद थोड़ी तकलीफ़ भी गवारा नहीं दूसरे पर बड़ी बड़ी आफ़तें ढाई जाती हैं

हुमायूँ को हाथ से न देना

हौसला ना हारना

अमीर के पास क़ब्र भी न हो

रुक: अमीर के पड़ोस में ख़ुदा क़ब्र भी ना बनवाए

पाँव के नीचे की मिट्टी भी ऐसी न होगी

टूटी टाँग पाँव न हाथ, कहे चलूँ घोड़ों के साथ

ऐसा काम करने की चेष्टा करना जिसे अधिक समर्थ भी न कर सकें

उड़ के खील भी मुँह में न जाना

कोई भी माँ के पेट से तो ले कर नहीं निकलता है

हर व्यक्ति को सीखना पड़ता है, जन्मजात विद्वान कोई नहीं होता, काम करने से ही आता है, कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता

मिज़ाज से लगा न खाना

आम रविष के मुताबिक़ ना होना, मिज़ाज के बरअक्स होना

हम अभी से फ़ातिहा के लिए हाथ उठाते हैं

(महिला) जब कोई झूट-मूट मरने की धमकी देता है तो औरतें कहती हैं

ज़हर के हाथ में लेने से बे खाए नहीं मरता

जुर्म किए बगै़र सज़ा नहीं होती

हाथ कान से नंगी

महिला जिसके पास कोई ज़ेवर, आभूषण न हो, अर्थ: ग़रीब, धनहीन, मुफ़लिस, निर्धन

ता'वीज़-गंडे के भरोसे पर न रहना कुछ कमर का भी ज़ोर लगाना

काम परिश्रम से होता है, स्वयं भी प्रयत्न करनी चाहिए, केवल विश्वास पर नहीं रहना चाहीए

यार की यारी से मतलब न कि उस के फ़'लों से

रुक : यार की यारी से काम इस के फे़अल / फे़अलों से अलख

हाथ न गले नाक में प्याज़ के डले

۔मिसल।(ओ) कमज़र्फ़ और ज़रा सी चीज़ पर इतराने वाली की निसबत बोलती हैं

मेहमान और बुख़ार को अगर खाना न दो तो फि नहीं आते

फ़ाक़े से बुख़ार में फ़ायदा रहता है और मेहमान को खाना ना मिले तो बार बार नहीं आता

होना न होना ख़ुदा के हाथ में, मार मार तो किए जाओ

अपनी तरफ़ से कोशिश होनी चाहिए परिणाम ईश्वर पर छोड़ना चाहिए

दो भी नहीं

एक भी नहीं, मुतलक़ कोई नहीं, थोड़े से भी नहीं

ख़ुदा अमीर के पास क़ब्र भी न बनवाए

अमीर का पड़ोस ज़हमत का बाइस होता है

न दो सर पकड़ के रो

अपनी मुसीबत का कोई भी शरीक नहीं है

उड़ के दाना भी मुँह में न जाना

दो-दो हाथ

दो हाथ के बराबर, बहुत ज़्यादा (लम्बाई चौड़ाई के लिहाज़ से)

भनंग भी न पहुँचना

कानों कान ख़बर ना होना

वक़्त हाथ से न देना

۔मौक़ा ना खोना

पक्की बेरी के बेर खाने वाले हैं

बगै़र मेहनत-ओ-मशक़्क़त के गुज़र करने वाले के निसबत बोलते हैं

एक-एक के दो-दो

हाथ से खाना

जिस का जो स्वभाव, जाए ना उस के जी से, नीम न मीठा हो, सींचो गुड़ और घी से

स्वभाव और बुरी 'आदत नहीं जाती चाहे कितना भी प्रयास किया जाए

पासंग भी न होना

रुक : पासिंग बराबर (भी) ना होना

हाथ तोड़-तोड़ के खाना

ऊँट जब तक पहाड़ के नीचे न आए किसी को अपने से ऊँचा नहीं समझता

दो हाथ में

दरिया में दो हाथ लगा के, तैर के

जुंबिश न खाना

जुंबिश न करना, हरकत न करना, दूर न होना, कम न होना

साँप भी मरे , लाठी भी न टूटे

ये भी कहेंगे कि हमें बकरी बंदर ले दो

महिज़ नादान और बेवक़ूफ़ हैं, किसी की बेवक़ूफ़ी ज़ाहिर करने के मौके़ पर बोलते हैं

आँखों में ख़ाक भी न डालूँ

(ओ)कुछ भी ना दूं (कुछ देने से इनकार में मुबालग़ा ज़ाहिर करने के लिए मुस्तामल)

पासंग भी न चढ़ना

(मुक़ाबलतन) हमवज़न या हमक़दर ना होना, कुछ भी बराबरी की निसबत ना रखना

'अशर-ए-'अशीर भी न होना

मूँढे भी अपने और हाथ भी अपने

इख़तियार हर तरह से अपने क़ाबू में है जैसा चाहें करें कोई रोक टोक करने वाला नहीं

दूधैल गाए की दो लातें भी सहते हैं

दूधेल गाय की दौलातें अलख

दो-दो हाथ चलना

झड़प होना, लड़ाई होना

मियाँ कमाते क्या हो एक से दस, सास नंद को छोड़ दो, हमें तुम्हें बस

जो कुछ तुम कमाते हो वो हमारे लिए बहुत है, सास-नंद को छोड़ कर अलग हो जाओ

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना के अर्थदेखिए

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

haath se ko.Dii ke do ber bhii na khaanaaہاتھ سے کوڑی کے دو بیر بھی نَہ کھانا

मुहावरा

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना के हिंदी अर्थ

  • बड़ी नाक़द्री करना
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ہاتھ سے کوڑی کے دو بیر بھی نَہ کھانا کے اردو معانی

  • بڑی ناقدری کرنا

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

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