मैं-मैं
ग़ुरूर, अहंकार, आत्म-विश्वास
मैं-मैं करना
स्वयं प्रशंसा करना, अपनी ही चर्चा करना, अपने अहंकार और घमंड का दिखावा करना तथा बकरी की आवाज़ निकालना, बकरी के जैसे बोलना
मैं मैं न जानों
काम बिगड़े या संवरे मुझ पर इल्ज़ाम नहीं, में बरी-उल-ज़मा हूँ, में क्या जानों
तू-मैं
हर कोई, हर एक, सब (लोग), हर किस-ओ-नाक्स
मैं-जानूँ
मैं ज़िम्मेदार हूँ, मेरा ज़िम्मा
तू-तू मैं-मैं
आपस में अशिष्टतापूर्वक होनेवाली कहा-सुनी या झगड़ा, एक दूसरे को बुरा कहना, कहा-सुनी, वाक्कलह, गाली-गलौज, ज़बानी लड़ाई झगड़ा
मैं वाह रे मैं
अपनी तारीफ़ करने वाले की निसबत बोलते हैं, अपने मनह्া मियां मिट्ठू
मैं-कौन
मुझ को क्या वास्ता है, संबंध न प्रकट करने के लिए प्रयुक्त
मैं सदक़े
ख़वातीन इंतिहाई प्यार के वक़्त बोलती हैं
अल्लाह मियाँ की मैं मैं
सीधा सादा भोला भाला, नादान
मैं तेरे सद्क़े
(अविर) निहायत ख़ुशी या ख़ुशामद के मौके़ पर बोला जाता है, में तेरे बलिहारी, बिल जाऊं, क़ुर्बान हूँ, वारी जाऊं, सदक़े जाऊं
मैं न जानूँ
यह काम बिगड़े या बने मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सकता मैं उत्तर-दायित्व नहीं हूँ
मैं जब जानूँ
किसी बात को मानने या स्वीकार करने से पहले इसे एक शर्त के रूप में कहा जाता है
मैं भी कहों
ऐसी जगह पर कहा जाता है जहां किसी स्थिति का कारण समझ में न आए, मैंने भी सोचा, मेरी समझ में न आया, मैं भी सोचता हूँ
मैं तो जानूँ
मेरे अनुमान से, मेरे अंदाज़े के मुताबिक़, मेरे ख़्याल से
मैं कौन हूँ
यानी मुझे क्या सरोकार, क्या ताल्लुक़, मुझे तुझ से कोई ताल्लुक़ नहीं
लाओ कुआँ, मैं डूबूँ
जब कोई निर्लज्ज व्यक्ति को निर्लज्जता के काम पर टोके और कहे कि डूब मरो तो वह उत्तर देता है कि डूबने की व्यवस्था करो
मैं न मानूँ
में विश्वास न करूं, मुझे बावर न आए, मैं स्वीकार न करूं, मैं सहमत न हूँ (ज़िद्दी या घमंडी व्यक्ति के लिए)
मैं तेरा गुड्डा बनाऊँगा
मैं तुझे ख़ूब अपमानित करूँगा
सब को ठेल मैं अकेल
अब कोई अपने अतिरिक्त जीवित नहीं है सब मर गए
मैं कहाँ तुम कहाँ
एक दूसरे के बीच एक बड़ा अंतर या दूरी है
मैं तो चराग़ सहरी हूँ
बहुत बुढ्ढा हूँ, मौत के क़रीब हूँ
मैं कुछ नहीं कहता
में शिकायत नहीं करता तथा मैं कोई राय नहीं देता
मैं थकी तू नाख़ूश
कोई कड़ी मेहनत करे और दूसरे को पसंद न हो
मैं भी हूँ पाँचवें सवारों में
अकारण ख़ुद को दूसरे बड़े लोगों में शामिल करना
मैं ऐसे फेरों में नहीं आता
मैं ऐसे धोखों में नहीं आता, मैं धोखा नहीं खाता
मैना जो मैं ना कहे दूध भात नित खाय, बकरी जो मैं मैं करे उलटी खाल खिंचाय
विनम्र व्यक्ति सम्मान पाता है और घमंड करने वाला हानि उठाता है
तू आन का तो मैं बान का , तू सूई तो मैं तागा , तू मिर्ज़ा तो मैं ख़ान का
यानी में हर हालत में तुझ से बढ़ चढ़ ही के रहूँगा
मैं की गर्दन में छुरी
अहंकारी सदैव नष्ट होता हैं, घमंडी हमेशा तबाह होता है
मैं नहीं या वो नहीं
कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा
मैं तेरी तस्बीह पढ़ता हूँ
मैं तुझे हर वक़्त याद करता हूँ
तू कहाँ और मैं कहाँ
तेरा मेरा क्या मुक़ाबला है, अगर आला से ख़िताब है तो अपने आप को कमतर और अदना से ख़िताब हो तो अपने आप को अफ़ज़ल ज़ाहिर किया जाता है
मैं तैरा गुडा बनाऊँगा
अर्थात मैं तुम्हें बहुत अपमानित करूंगा, मैं तुम्हें ध्वज पर चढ़ाऊंगा (यह कहावत हिन्दुओं की उस रीति-रिवाज से ली गई है जिसमें किसी बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने वाले लोग गढ्ढा बनाकर नृत्य करते हैं)
मैं तो बिन दामों गुलाम हूँ
मैं तो आपका फ़्री का ग़ुलाम हूँ मैं तो आज्ञाकारी हूँ
मेरा ख़ुदा और मैं
मैं जानता हुँ या मेरा ख़ुदा, सौगंध खाने के अवसर पर पर्युक्त
मैं अपनी नाक कटवा दूँ
किसी बात को विश्वास दिलाने के लिए कहते हैं
मैं अब कहीं का न रहा
मैं अब किसी की तरफ़ नहीं रहा, मैं अब किसी लायक़ नहीं रहा, अब मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकता
मैं ख़ुश मेरा ख़ुदा ख़ुश
किसी बात की मंज़ूरी या हालात से संतुष्ट होने पर ये वाक्य बोला जाता है, में ख़ुशी के साथ आज्ञा देता हूँ, मेरी यही ख़ुशी है, में हर तरह राज़ी हूँ
मैं उस के जूती भी नहीं मारता
मैं उसकी परवाह नहीं करता, मैं उसका ज़रा लिहाज़ नहीं करता
हाए मैं मर गई
(महिला) चोट लगने या मुसीबत में पड़ने के अवसर पर प्रयुक्त
मैं के गर्दन में छुरी
घमंडी व्यक्ति सदैव तबाह होता है, घमंड का परिणाम बुरा होता है