तू-मैं
हर कोई, हर एक, सब (लोग), हर किस-ओ-नाक्स
तू-तू मैं-मैं
आपस में अशिष्टतापूर्वक होनेवाली कहा-सुनी या झगड़ा, एक दूसरे को बुरा कहना, कहा-सुनी, वाक्कलह, गाली-गलौज, ज़बानी लड़ाई झगड़ा
मैं थकी तू नाख़ूश
कोई कड़ी मेहनत करे और दूसरे को पसंद न हो
तू आन का तो मैं बान का , तू सूई तो मैं तागा , तू मिर्ज़ा तो मैं ख़ान का
यानी में हर हालत में तुझ से बढ़ चढ़ ही के रहूँगा
तू कहाँ और मैं कहाँ
तेरा मेरा क्या मुक़ाबला है, अगर आला से ख़िताब है तो अपने आप को कमतर और अदना से ख़िताब हो तो अपने आप को अफ़ज़ल ज़ाहिर किया जाता है
तू हे और मैं हूँ
अब और कोई नहीं, अब ऐसा बदला लूंगा कि तो भी याद करे
उतरा पातर, मैं मियाँ तू चाकर
ऋणी के ऋण का भुगतान हो जाए तो उसका सम्मान बढ़ जाता है और वो किसी का दबैल नहीं रहता
मैं तुझे चाहूँ और तू काले ढींग को
जब कोई किसी को बुरे काम से रोके या मन' करे और वो न रुके तो कहते हैं
न मैं कहूँ तेरी, न तू कह मेरी
जो व्यक्ति दूसरे को दोष नहीं देता तो दूसरा भी उसे दोष नहीं देता, आपस की गोपनीयता के संबंध में बोलते हैं
मैं करूँ भलाई, तू करे मेरी आँख में सलाई
उस अवसर पर बोला करते हैं जब कोई व्यक्ति किसी के उपकार करने के बदले उसके साथ बुराई करे
मैं मरूँ तेरे लिए, तू मरे वा के लिए
धोकेबाज़ है, मैं उस पर जान देता हूँ परंतु वह मेरे अतिरिक्त दूसरों पर अधिक ध्यान देता है
न तू कह मेरी न मैं कहूँ तेरी
तुम मेरा ऐब छुपाओ, में तुम्हारा ऐब छुपाऊंगा
तू मेरा बाला खिला, मैं तेरी खिचड़ी खाउं
अहमक़ कर दम दे कर राज़ी कर लेते हैं
तू ने की राम-जनी, मैं ने किया राम-जना
दुश्चरित्र स्त्री दुश्चरित्र पति से कहती है तू बुरा काम करता है तो में भी करती हूँ
नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं डालता
तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है
नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं धरता
तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है
धी री मैं तुझ को कहूँ बहूरी तू कान धर
बेटी को नसीहत की जाती है बराह-ए-रास्त बहू से नहीं कहा जाता, किसी को सुनाने के लिए दूसरों को नसीहत करने के मौक़ा पर मुस्तामल
तू मेरे बाले को चाहे तो मैं तेरे बूढ़े को चाहूँ
अगर तुम मेरा भला करोगे तो में तुम्हारा भला करूँगा
मैं भी रानी तू भी रानी, कौन भरे नद्दी से पानी
अकर्मण्य एवं काहिलों के प्रति कहते हैं
तू चाह मेरी जाई को, मैं चाहूँ तेरे खाट के पाए को
सास अपने दामाद से कहती है कि तुम मेरी बेटी के साथ अच्छा व्यवहार करोगे तो मैं तुम्हारी सब वस्तु का सम्मान करूँगी
कपड़ा कहता है तू कर मुझे तह, मैं तुझे करूँ शह
कपड़े को सुरक्षित तरीक़े से पहनने वाले की ख़ुश-पोशाकी सम्मान का कारण होती है
तू चल मैं आया
एक के बाद दूसरे के आने का तांता बंधने और शृंखला न टूटने के मौक़ा पर प्रयुक्त
मैं कौन तू कौन
तुझे मुझसे क्या संबंध, मेरा-तेरा कोई संबंध नहीं
तू चल मैं चल
۔(ओ) हलचल होने की जगह। बाग़ में अज़ां हुई या तो एक एक चुप चुप कररहा था अल्लाह अकबर की सदा सुनते ही तोॗ चल में चल एक एक खिसकने लगा
ये घोड़ा किस का जिस का मैं नौकर तू नौकर किस का जिस का या घोड़ा
टालने के मौक़ा पर कहते हैं, मुबहम बात पर तंज़न ये फ़िक़रा अदा करते हैं
आज मैं, कल तू
आज मेरी बारी है तो कल तुम्हारी, चेतावनी के तौर पर मृत्यु से संबंधित कहते हैं कि वह अवश्य आएगी अर्थात सबको एक दिन इस संसार से जाना है
तू मेरा लड़का खिला, मैं तेरी खिचड़ी पकाऊँ
तू मेरा काम कर मैं तेरा काम करूँ
तू कौन और मैं कौन
(मुराद) कोई किसी को नहीं पूछता है, एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं
तू छूई कि मैं मूई
(व्यंग्य के रूप में) महिलाएँ किसी के कृत्रिम नाज़ुक स्वभाव को व्यक्त करने के अवसर पर कहती हैं
तू मुझ को तो मैं तुझ को
जैसा व्यवहार करोगे वैसा तुम्हारे साथ होगा
तू मुझ पर मैं तुझ पर
एक पर एक एक दूसरे पर गिरते पड़ते, बदहवासी से
मैं डाल डाल, तू पात पात
में तुझ से कम चालाक नहीं, मुझ से बच कर नहीं जा सकता
तू डाल डाल तो मैं पात पात
रुक: तुम डाल डाल तो में पात पात
मैं तुझ पर और तू मुझ पर
बहुत ज़्यादा भीड़ हो तो कहते हैं
तू देवरानी मैं जिठानी , तेरे आग न मेरे पानी
(ओ) दोनों मुफ़लिस और कंगाल हैं
तू भी रानी, मैं भी रानी , कौन भरे पन घट पर पानी
जब सब के सब किसी काम से जी चुराईं या इस काम को अपने मरतबे से गिरा हुआ ख़्याल करें तो इस मौक़ा पर ख़ुसूसन औरतें बोलती हैं