मैं नहीं या वो नहीं
कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा
आज मैं नहीं या वह नहीं
आज में अपनी जान दे दूँगा या उसकी (तुम्हारी) जान ले लूँगा (अत्यधिक क्रोध एवं शत्रुता के स्थान पर
मैं कुछ नहीं कहता
में शिकायत नहीं करता तथा मैं कोई राय नहीं देता
मैं ऐसे फेरों में नहीं आता
मैं ऐसे धोखों में नहीं आता, मैं धोखा नहीं खाता
मैं उस के जूती भी नहीं मारता
मैं उसकी परवाह नहीं करता, मैं उसका ज़रा लिहाज़ नहीं करता
मैं उस की सूरत से भी वाक़िफ़ नहीं
मैं ने उसे कभी देखा भी नहीं
आप को तो मैं नहीं पहचानता
किसी निःसंकोच मित्र या साथी के बहुत दिन में सूरत दिखाने के अवसर पर उलाहना देने के लिए प्रयुक्त
मैं उस की शक्ल का कुत्ता भी नहीं पालता
मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता, मुझे उससे अधिक नफ़रत है
क़ाज़ी जी बहुत हराएँ मैं हारता ही नहीं
कोई व्यक्ति समझाने के अतिरिक्त न समझे और जो कुछ उसके दिमाग़ में जम जाये उसी पर सदृढ़ रहे
आप दुनिया में हैं क्या मैं दुनिया में नहीं
मैं आप की चालें ख़ूब समझता हूँ मुझ से चालाकी न कीजिए
नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं डालता
तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है
नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं धरता
तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है