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हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा

जब गदाई इख़तियार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

۔मिसल।(ओ)जब गदाईआख़तयार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार कर ली तो पेट पालने की क्या फ़िक्र

जब हाथ में लिया कासा तो रोटियों का क्या साँसा

जब निर्लज्जता अपनाई तो रोटी की क्या कमी

ख़ंजर तले तक दम लिया तो फिर क्या

मुसीबतों में थोड़ा सा आराम मिला तो कौन सी बड़ी बात है

हाथों-हाथ लिया जाना

۱۔ बहुत इज़्ज़त होना, बहुत ताज़ीम होना, ख़ूब आओ-भगत होना

लीक का पैसा तो हाथ की लकीरें हैं

राहदारी का महसूल तो देना ही पड़ेगा , नेग देना ही पड़ता है

साँप तो निकल गया पर रास्ता देख लिया

इस मर्तबा तो गुज़र गई आईंदा ख़ैर चाहिए

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोस

अपनी चीज़ या औलाद नाक़िस हो या अपने में कोई कमी हो तो एतराज़ करने वाले को क्या इल्ज़ाम दिया जाये

सौ लगें तो क्या , हज़ार लगें तो क्या

सख़्त बेशरम और ढीट है

जहाँ काँसा वहाँ बिजली का साँसा

जहाँ धन-दौलत वहाँ चोर उचक्का

क्या उखाड़ लिया

क्या बिगाड़ लेगा, क्या ज़रूर पहुंचा सकता है, कुछ नहीं कर सकता

ज़िंदा है तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

ज़िंदा रही तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोश

अपनी चीज़ या औलाद नाक़िस हो या अपने में कोई कमी हो तो एतराज़ करने वाले को क्या इल्ज़ाम दिया जाये

संग सोई तो लाज क्या

हमराह सोने के बाद कौनसी श्रम रह जाती है, इस वक़्त कहते हैं जब कोई बेजा तौर पर शरमाए

आज सुब्ह किस कंजूस का नाम लिया था

सुबह को पहली बार किस अभागे का नाम मुंह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

आसा का कासा

ये एक मन्नत है मुराद पूरी होने पर लखनऊ में अक्सर औरतें पैग़म्बर मोहम्मद साहब पुत्री फ़ातिम के नाम का प्याला भर कर नज़्र दिलवाती हैं और परहेज़गार सय्यदानियों को खिलाती हैं

भीक का कासा

कीजिए तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

आए तो क्या आए

थोड़े समय ठहर कर चलते बने, ऐसे आने से न आना अच्छा था

मुफ़्त का दर्द-ए-सर अपने सर लिया है

यानी दूसरे की ज़हमत ख़ुद ओढ़ ली है

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

भीक का कासा

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे

जो वस्तु जिस काम के लिए बनाई गयी है वह काम उसी से निकलता है

सोने के कटोरे को भीक की क्या कमी

सोने की कटोरी अलख

हाथ कंगन को आरसी क्या

(शाब्दिक) हाथ के कंगन को देखने के लिए आईने की ज़रूरत नहीं होती, अर्थात: जो बात ज़ाहिर हो उसके खोजने करने की क्या ज़रूरत है, जो चीज़ आँखों के सामने हो उसको क्या बयान करना

देखो तो मैं क्या करता हूँ

(फ़ख़्रिया कलिमा) मेरे करतब अब आप मुलाहिज़ा कीजिए, मेरी चालाकी अब आप देखिए

आए भी तो क्या आए

ज़रा सी देर रुक कर चले जाने के अवसर पर प्रयुक्त

'आशिक़ी न कीजिए तो क्या घास खोदिये

जिस ने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या लाग

अपनी चीज़ या औलाद नाक़िस हो या अपने में कोई कमी हो तो एतराज़ करने वाले को क्या इल्ज़ाम दिया जाये

निकली तो घूँगट क्या

जब पर्दे से बाहर हुई तो फिर घूंगट का क्या निकालना, बेशरम के मुताल्लिक़ कहते हैं

हाथ कंगन के लिए क्या आरसी

क्या काँटों में हाथ पड़ता है

क्या ऐब लगता है, क्या नुक़्सान होता है

'आशिक़ी अगर न कीजिए तो क्या घाँस खोदिए

रुक : आशिक़ी ना कीजीए तो क्या घान खो दिए

भीक का टुकड़ा

ओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब स्वयं को ख़तरे में डाल दिया फिर परिणाम की क्या चिंता, जब जान-बूझ कर ख़तरा मोल लिया तो आने वाली समस्याओं की क्या परवाह

आरसी तो हाथ में लो

रुक : आरसी तो देखो

मैं न समझूँ तो भला क्या कोई समझाए मुझे

ज़िद्दी आदमी के मुताल्लिक़ कहते हैं, आदमी ख़ुद ना समझना चाहे तो कोई नहीं समझा सकता

ओखल में सर दिया तो धमकों से क्या ख़तरा

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

चातुर का काम नहीं पातुर से अटके, पातुर का काम ये है लिया दिया सटके

दाना आदमी बीसवा औरत के फ़रेब में नहीं फंसता, बीसवा का यही काम कि लिया दिया अलग हुई

हाथ कंगन को आरसी क्या ज़रूर

ख़ाली हाथ क्या जाऊँ एक संदेसा लेता जाऊँ

स्पष्ट बात न कहना, ٖउस व्यक्ति के संबंध में बोलते हैं जो सभा में हर दिन एक नया चुटकुला या ढकोसला छोड़ता है

माँ डाएन हो तो क्या बच्चों ही को खाएगी

बुरा इंसान भी अपनों का लिहाज़ करता है, अपनों को कोई नक्साक् नहीं पहुंचाता चाहे ग़ैरों से कैसा सुलूक करे

नाचने निकली तो घूँगट क्या

जब मंज़रे आम पर किए जाने वाला काम इख़तियार किया तो फिर श्रम कैसी , इरादा ही कर लिया तो फिर इस में शर्माना अबस है

नाचने निकले तो घूँगट क्या

जब सार्वजनिक स्थान पर किए जाने वाला काम चुना तो फिर लाज कैसी, ठान ही लिया तो फिर इस में लाज करना बेकार है

एक आँख मटर का बिया, वह भी आँख भवानी लिया

हानि पर हानि होना

हाथ से खुले तो दाँत क्यों लगाए

आसानी से काम बने तो दुशवारी क्यों इख़तियार करे

जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब कोई अपने आपको ख़तरे में डाल दिया हो, तो उसे परिणाम से डरना नहीं चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो, यदि कठिन कार्य हाथ में ले लिया है तो कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए, कठिन कार्य शुरू करने पर कठिनाई तो सहन करनी ही पड़ती है

टाल बजा कर माँगे भीक, उस का जूग रहा कब ठीक

घंटी बजा कर मांगने वाले साधुओं पर कटाक्ष है कि यह कैसी साधुता है, जो घंटा बजाकर भीख मांगे उसकी साधना तो व्यर्थ है

सोने में हाथ डालूँ तो मिट्टी हो

कमाल नहूसत, बहुत बड़ी बद बुख़ती, क़िस्मत की बुराई, अदबार

नाचने लगे तो घुँगट क्या ज़रूर

रुक : नाचने निकले तो घूंगट कैसा

ख़ुदा की चोरी नहीं, तो बंदे की क्या चोरी

(कोई बुरा काम करने पर ढिटाई से कहते हैं) जब अल्लाह का डर नहीं तो बंदों का क्या डर

तू कर अपना काम तो लिया भोसन दे

तो अपना काम किए जा, कुत्तों को भौंकने दे, दूसरे लोग कुछ ही कहीं अपने काम को नहीं रोकना चाहिए

ओखल सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

राजा हुए तो क्या हुआ अंत जाट के जाट

कमीना कितने ही बलंद मर्तबा पर पहुंच जाये उस की फ़ितरत नहीं बदलती , दौलतमंद हो जाने के बावजूद पुरानी आदतें नहीं बदलतीं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा के अर्थदेखिए

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा

haath liyaa kaa.nsaa to bhiik kaa kyaa aasaaہاتھ لِیا کانْسا تو بِھیک کا کیا آسا

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा के हिंदी अर्थ

  • जब गदाई इख़तियार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम
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ہاتھ لِیا کانْسا تو بِھیک کا کیا آسا کے اردو معانی

  • جب گدائی اختیار کرلی تو پھر مانگنے میں کیا شرم

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हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा

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