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हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या आँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार कर ली तो पेट पालने की क्या फ़िक्र

हाथ में लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या साँसा

۔मिसल।(ओ)जब गदाईआख़तयार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

हाथ लिया काँसा तो भीक का क्या आसा

जब गदाई इख़तियार करली तो फिर मांगने में क्या श्रम

जब हाथ में लिया कासा तो रोटियों का क्या साँसा

जब निर्लज्जता अपनाई तो रोटी की क्या कमी

ख़ंजर तले तक दम लिया तो फिर क्या

मुसीबतों में थोड़ा सा आराम मिला तो कौन सी बड़ी बात है

हाथ में लाना पेट में खाना

मुफ़लिस के मुताल्लिक़ कहते हैं जिस के पास कुछ ना हो, कमा के लाए तो खाए, जो कमाना सौ खाना, मेहनत से पैदा करना और ग़रीबाना तौर पर पत्तल में खा लेना

पेट में घुसे तो भेद मिले

किसी के मन की बात जानना बहुत कठिन है, किसी के मन की बात उसके घनिष्ठ संपर्क में आने से ही जानी जा सकती है अर्थात जब किसी से बहुत दोस्ती हो जाए तब भेद पता चलता है

क्या काँटों में हाथ पड़ता है

क्या ऐब लगता है, क्या नुक़्सान होता है

हाथों-हाथ लिया जाना

۱۔ बहुत इज़्ज़त होना, बहुत ताज़ीम होना, ख़ूब आओ-भगत होना

लीक का पैसा तो हाथ की लकीरें हैं

राहदारी का महसूल तो देना ही पड़ेगा , नेग देना ही पड़ता है

ओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब स्वयं को ख़तरे में डाल दिया फिर परिणाम की क्या चिंता, जब जान-बूझ कर ख़तरा मोल लिया तो आने वाली समस्याओं की क्या परवाह

ओखल में सर दिया तो धमकों से क्या ख़तरा

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

दो प्याले पी तो लें हरम-ज़दगी तो पेट में है

दिल में खोट है, फिर भी फ़ायदा उठाते हैं

आरसी तो हाथ में लो

रुक : आरसी तो देखो

पेट में पड़े तो 'इबादत सूझे

पेट भरा हो तो प्रमात्मा का ध्यान आता है भूके से पूजा नहीं होती

सोने में हाथ डालूँ तो मिट्टी हो

कमाल नहूसत, बहुत बड़ी बद बुख़ती, क़िस्मत की बुराई, अदबार

जब अओखली में सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब कोई अपने आपको ख़तरे में डाल दिया हो, तो उसे परिणाम से डरना नहीं चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो, यदि कठिन कार्य हाथ में ले लिया है तो कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए, कठिन कार्य शुरू करने पर कठिनाई तो सहन करनी ही पड़ती है

जब पेट में खदिया लगी मीठा और सलोना क्या

भूक में जो मिले मीठे और सलोने से कुछ काम नहीं, ज़रूरत ऐसी होती है

पेट में चूहों का क़ला-बाज़ियाँ खाना

पेट में चूहों का क़ला-बाज़ी खाना

۔बेइंतिहा भूक लगना। भूक से बेताब होना

साँप तो निकल गया पर रास्ता देख लिया

इस मर्तबा तो गुज़र गई आईंदा ख़ैर चाहिए

मिट्टी में हाथ डाले तो सोना हो जाए

निहायत ख़ुशनसीब है, जो काम करता है इस से बेइंतिहा नफ़ा होता या बहुत पैसा कमाता है, ख़ुशनसीब को हर काम में फ़ायदा होता है

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोस

अपनी चीज़ या औलाद नाक़िस हो या अपने में कोई कमी हो तो एतराज़ करने वाले को क्या इल्ज़ाम दिया जाये

तोंबी हाथ में लेना

भीक मांगने के लिए तोंबी हाथ में ले लेना, भीक मांगने लगना, भिक्षा मांगने लगना, जोगी बनना, जोगन बनना

सौ लगें तो क्या , हज़ार लगें तो क्या

सख़्त बेशरम और ढीट है

जोगी जुगत जाने नहीं गबरू में कपड़े रंगे तो क्या हुआ

सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से नावाक़िफ़ हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं, ज़ाहिर आरा की निसबत बोलते हैं

जोगी जुगत जाने नहीं गबरू में कपड़े रंगे तो क्या होगा

सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से नावाक़िफ़ हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं, ज़ाहिर आरा की निसबत बोलते हैं

मुँह का निवाला मुँह में , हाथ का हाथ में रह गया

मुँह का मुँह में, हाथ का हाथ में निवाला रह गया

सुनते ही होश उड़ गए, आश्चर्य का मोहौल छा गया

मुँह का मुँह में हाथ का हाथ में निवाला रह गया

सोने में हाथ डालो तो मिट्टी हो

कमाल नहूसत, बहुत बड़ी बद बुख़ती, क़िस्मत की बुराई, अदबार

जहाँ काँसा वहाँ बिजली का साँसा

जहाँ धन-दौलत वहाँ चोर उचक्का

बग़ल में तोशा तो मंज़िल का भरोसा

इस शख़्स की कामयाबी यक़ीनी है जो सी मुहिम पर रवाना होने से पहले पूरी तरह सामान से लैस हो

मुल्ला न होगा तो क्या मस्जिद में अज़ाँ न होगी

क्या उखाड़ लिया

क्या बिगाड़ लेगा, क्या ज़रूर पहुंचा सकता है, कुछ नहीं कर सकता

ज़िंदा है तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

ज़िंदा रही तो क्या मरी तो क्या

वजूद बेकार है, ज़िंदा रहना या ना रहना सब यकसाँ है

सूप बोले तो बोले छलनी भी क्या बोले जिस में बहत्तर छेद

बेऐब और ऐबदार या बद और नेक का मुक़ाबला बेमानी होता है, जो ख़ुद कमज़ोरियां रखता हो वो दूसरों के सुधार में क्या हिस्सा लेगा

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोश

अपनी चीज़ या औलाद नाक़िस हो या अपने में कोई कमी हो तो एतराज़ करने वाले को क्या इल्ज़ाम दिया जाये

पेट पड़ें रोटियाँ तो सभी गलाँ मोटियाँ

जब आदमी दौलतमंद हो जाये तो इस में बहुत सी बातें आजाती हैं, मआशी बेफ़िकरी में ख़ूब बातें सूझती हैं

संग सोई तो लाज क्या

हमराह सोने के बाद कौनसी श्रम रह जाती है, इस वक़्त कहते हैं जब कोई बेजा तौर पर शरमाए

गंगा के मेले में चक्की रहे का क्या काम

बड़े लोगों के मजमा में अदना की कौन सुनता है , बेमहल और बे मौक़ा काम की क़दर नहीं होती

आज सुब्ह किस कंजूस का नाम लिया था

सुबह को पहली बार किस अभागे का नाम मुंह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

वकीलों का हाथ पराई जेब में

वकील बगै़र फ़ीस लिए किसी का काम नहीं करते

होना न होना ख़ुदा के हाथ में, मार मार तो किए जाओ

अपनी तरफ़ से कोशिश होनी चाहिए परिणाम ईश्वर पर छोड़ना चाहिए

कीजिए तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

आए तो क्या आए

थोड़े समय ठहर कर चलते बने, ऐसे आने से न आना अच्छा था

मुल्ला न होगा तो क्या मस्जिद में अज़ान न होगी

किसी ख़ास आदमी के ना होने से इस से मुताल्लिक़ काम रुका नहीं रहता, दुनिया के काम किसी के होने या ना होने से बंद नहीं होते

बिच्छू का मंतर न जाने बाँबी में हाथ डाले

(कम सवारी और ना वाजिब हौसलामंदी पर तंज़) ज़रा से काम की लियाक़त नहीं रखता और बड़े कामों का हौसला करता है

पेट बीच पड़ी रोटियाँ तो सभी बातें मोटीयाँ

मुफ़्त का दर्द-ए-सर अपने सर लिया है

यानी दूसरे की ज़हमत ख़ुद ओढ़ ली है

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

घुटने नीवेंगे तो पेट ही को नीवेंगे

अपनों की तरफ़ से ढलते हैं , हर शख़्स अपनों ही का फ़ायदा ढूंढता है

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे

जो वस्तु जिस काम के लिए बनाई गयी है वह काम उसी से निकलता है

हाथ कंगन को आरसी क्या

(शाब्दिक) हाथ के कंगन को देखने के लिए आईने की ज़रूरत नहीं होती, अर्थात: जो बात ज़ाहिर हो उसके खोजने करने की क्या ज़रूरत है, जो चीज़ आँखों के सामने हो उसको क्या बयान करना

देखो तो मैं क्या करता हूँ

(फ़ख़्रिया कलिमा) मेरे करतब अब आप मुलाहिज़ा कीजिए, मेरी चालाकी अब आप देखिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा के अर्थदेखिए

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा

haath me.n liyaa kaa.nsaa to peT kaa kyaa aa.nsaaہاتھ میں لِیا کانسا تو پیٹ کا کیا آنسا

हाथ में लिया काँसा तो पेट का क्या आँसा के हिंदी अर्थ

  • जब बेग़ैरती इख़तियार की तो फिर मांगने में क्या श्रम
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ہاتھ میں لِیا کانسا تو پیٹ کا کیا آنسا کے اردو معانی

  • جب بے غیرتی اختیار کی تو پھر مانگنے میں کیا شرم ۔

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