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ये वो न हो

۔ये वो बात नहीं। ये वैसा मुआमला नहीं।

वो राजा मरता भला जिसमें न्याव न हो, मरी भली वो स्त्री लाज न राखे जो

बे इंसाफ़ राजा और बेहया औरत का मर जाना बेहतर है

ख़सम देवर दोनों एक सास के पूत, ये हो या वो हो

किसी स्त्री के प्रति व्यंग्य में कहना जिसका देवर से प्रेम हो गया हो

ये न हो

कोई भी नहीं, एक भी नहीं मिल सकता, इधर ना उधर, दोनों नहीं, दोनों में से कोई भी नहीं

दर्द को वो समझे जो दर्दमंद हो

दूसरे की पीड़ा वही समझ सकता है जो स्वयं उसी पीड़ा से पीड़ित रहा हो, दूसरे की तकलीफ़ को वह आदमी समझ सकता है जो ख़ुद उसी तकलीफ़ में मुबतला रह चुका है

जैसे ये वैसे वो

हमारे नज़दीक दोनों एक जैसे हैं

ये गए वो गए

रुक : ये जा वो जा, फ़ौरन चले गए

कहाँ ये कहाँ वो

इन का क्या मुक़ाबला, उन का कोई मुक़ाबला नहीं

कहाँ हो कहाँ न हो

दर्द को वो समझते जो दर्द मंद हो

दूसरे की तकलीफ़ को वो आदमी समझ सकता है जो ख़ुद तकलीफ़ में मुबतला रह चुका हो

मरते वक़्त कलिमा-ए-मोहम्मद न नसीब हो

(कोसना) एक प्रकार की क़सम और बद-दुआ, इस बात पर ज़ोर देना कि जो कुछ मैं कह रहा हूँ वो बिलकुल ठीक है

वो बात कहते हो कि गधे को भी हँसी आए

नादानी की बात, सरासर नादानी की बात कहना, बहुत बेवक़ूफ़ी की बात करते हो

ये कहें ज़मीं वो कहें आसमान , ये कहें आम वो कहें इमली

शदीद इख़तिलाफ़ राय ज़ाहिर के लिए बोलते हैं यानी ये कुछ कहते हैं और वो कुछ और कहते हैं, एक कहे दिन दूसरा कहे रात

किसी ने ये भी न पूछा कि तुम किस बाग़ की मूली हो

किसी ने परवाह भी नहीं की, रास्ते सुरक्षित हैं कहीं लूट मार नहीं होती, उस सल्तनत के बारे में कहते हैं जिस में सुख-शाँति हो

जो अपने काम न आए वो चूल्हे में जाए

बेफ़ैज़ आदमी किसी काम का नहिं

साँझ जाए और भोर आए , वो कैसे न छिनाल कहलाए

जो औरत शाम को जाये और सुबह को आए वो बदचलन समझी जाती है जो सरीहन बद हो उसे बद ही कहा जाएगा

ये भी न हुआ वो भी न हुआ

कुछ फ़ासिला ना हुआ, दोनों में से कोई काम ना बना, कोई मुराद भी हासिल ना हुई

तुरत-फुरत हो वो भी कार मदद करे जिस की सरकार

जिस काम में ईश्वर की सहायता हो वह जल्द हो जाता है

सौ खोटों का वो सरदार , जिस की छाती एक न बाल

मशहूर है कि जिस की छाती पर बाल ना हूँ वो सख़्त दग़ाबाज़ होता है

वो बाल खींचूँ कि जिस की जड़ दूर हो

सारे छपे छुपाए ऐब ज़ाहिर कर दूं, तमाम आलम में रुसवाई का मूजिब और ज़िल्लत-ओ-ख़ारी का बाइस बनूं

पश्म-कंदा न हो सकना

कुछ ना बिगड़ सकना, ज़र्रा भर नुक़्सान ना पहुंचना, कुछ ना हो सकना

एक आँख ये एक आँख वो

दोनों समान हैं, बराबर हैं, दोनों एक सी तवज्जोह के पात्र हैं

वो शाख़ ही न रही जिस पे आशियाना था

वो चीज़ ही बाक़ी ना रही जिस के लिए सब वलवले थे, मायूसी की हालत का इज़हार

कहीं ऐसा न हो जाए

ख़िलाफ़-ए-तवक़्क़ो बात ना हो जाये उमूमन अंदेशे के मौक़ा पर बोलते हैं

ये आँख सावन , वो आँख भादों

किसी के मुतवातिर फूट फूट कर रोने के वक़्त मुस्तामल

हाँसी में खाँसी न हो जाए

ख़ुशी में रंज ना हो जाये

ये वो

इधर-उधर की या टाल-मटोल की बात-चीत

वो और होंगे

वो कोई और लोग होंगे, हम ऐसे नहीं हैं, ये काम हम नहीं करते

वो महफ़िल हैरान जहाँ पान न-बाशद

(डू मुनियां पैसे मांगते वक़्त बोलती थीं) वो महफ़िल महफ़िल ही नहीं है जहां पान से तवाज़ो ना हो , मुराद : पान का ख़र्च दे दो

फ़रज़ंद वो है जो ख़लफ़ हो

क्यूँ न हो

शाबाश, क्या कहना, अवश्य, ज़रूर, वाह वाह, क्यों नहीं, ऐसा ज़रूर हो

जिस के कारण जोग लिया वो न मिला

जिस के लिए इतनी मेहनत की वही ना मिल सका

वहाँ मारिए जहाँ पानी न हो

रुक : वहां गर्दन मारीए अलख

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ये वो गुड़ नहीं जिसे मक्खियाँ खाएँ

हर एक को ये बात नसीब नहीं होसकती, ये ऐसा माल नहीं जिसे हर कोई खाए, ये चीज़ ऐसे वेसों के काबिल नहीं हमें कोई फ़ंद-ओ-फ़रेब से नहीं ठग सकता हमारा माल कोई नहीं खा सकता

ये वो गुड़ नहीं जो च्यूँटे खाएँ

हर एक को ये बात नसीब नहीं होसकती, ये ऐसा माल नहीं जिसे हर कोई खाए, ये चीज़ ऐसे वेसों के काबिल नहीं हमें कोई फ़ंद-ओ-फ़रेब से नहीं ठग सकता हमारा माल कोई नहीं खा सकता

नेक बीबियों के साथ हश्र न हो

(ओ) बख़शिश ना हो (एक कोसना

जिस पगड़ी में हो न चिल्ला पगड़ी नहीं वो फेंटी है

चिल्लद से अलबत्ता पगड़ी की ज़ेबाइश हो जाती है , हर चीज़ अपने औसाफ़ में पूरी होनी चाहिए

आँखों में शर्म न हो तो ढेले अच्छे

ढीट होने से अच्छा है कि अंधा हो (अश्लीलता को दोष देने के स्थान पर प्रयुक्त)

क़िब्ला हो तो मुँह न करूँ

कमाल-ए-बेज़ारी ज़ाहिर करने के मौक़ा पर कहते हैं

ये तुम्हारी और वो हमारी

रास्ते अलग अलग हैं बाहम इख़तिलाफ़ नागुज़ीर है

ये वो गुड़ नहीं जिस को मक्खियाँ खाएँ

हर एक को ये बात नसीब नहीं होसकती, ये ऐसा माल नहीं जिसे हर कोई खाए, ये चीज़ ऐसे वेसों के काबिल नहीं हमें कोई फ़ंद-ओ-फ़रेब से नहीं ठग सकता हमारा माल कोई नहीं खा सकता

नाक न हो तो गू खाएँ

महिलाओं की निंदा में प्रयुक्त, अर्थात अगर इज़्ज़त की परवाह न हो तो ख़राब से ख़राब बैठें

वहाँ गर्दन मारिए जगाँ पानी न हो

इस को निहायत सख़्त और संगीन सज़ा देनी चाहिए

कफ़न नसीब न हो

(कोसना) बे गुरू-ओ-कफ़न रहे

दिन भले ही न हो जाएँ या फिर भी न जाएँ

अगर काम हो जाये तो नसीबा ही ना जाग जाये

हों न हों

यक़ीनन

अपनी गाँठ न हो पैसा तो पराया आसरा कैसा

अपने भरोसे पर काम करना चाहिए

टका हो जिस के हाथ में वो बड़ा है ज़ात में

मालदारी आदमी को बड़ी जाति का बना देती है, पैसे वाले का ही सम्मान सब जगह होता है

साठ सासें नंद हों सौं, माँ की हवा न अनसों हो

चाहे साठ सास / सासें और नंद हूँ माँ के बराबर नहीं हो सकतीं

साठ सास नंद हों सौं, माँ की होर न अनसों हो

चाहे साठ सास / सासें और नंद हूँ माँ के बराबर नहीं हो सकतीं

साठ सास नंद हों सौं, माँ की होर न अनसों हो

चाहे साठ सास / सासें और नंद हूँ माँ के बराबर नहीं हो सकतीं

नज़र न हो जाए

बुरी दृष्टि न लगे, बुरी दृष्टि दूर ही रहे, ईश्वर बुरी दृष्टि से सुरक्षित रखे

ज़ामिन न हो जैसे गिरह से दीजिये

किसी का जिम्मेदार बनने से अच्छा है कि गिरह से दे दे, पक्का आश्वासन देने से रोकड़ देना अच्छा है

नाक न हो तो गुह खाएँ

आबरू की पर्वा ना करें (औरतों की बद अकली के इज़हार के लिए मुस्तामल)

रंडी के नाक न होती तो वो गूह खाती फिरती

औरत बहुत बेवक़ूफ़ होती है

का'बा हो तो उस की तरफ़ मुँह न करूँ

किसी जगह से इस क़दर बेज़ार और तंग होना कि अगर वो जगह मुक़ाम मुक़द्दस और ख़ुदा का घर भी बिन जाये तो उधर का रुख़ ना करना ग़रज़ निहायत बेज़ार तंग और आजिज़ हो जाने के मौक़ा पर ये फ़िक़रा बोला जाता है

भूक में भजन भी न हो

भूखे आदमी से इबादत और पूजा भी नहीं हो सकती

अपनी मुर्ग़ी बुरी न हो तो हमसाए में अंडा क्यों दे

नुक़्सान अपने ही हाथों होता है

ऐसा न हो

मबादा, शाहिद, ख़ुदा-ना-ख़ासता

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में ये वो न हो के अर्थदेखिए

ये वो न हो

ye vo na hoیِہ وہ نَہ ہو

वाक्य

ये वो न हो के हिंदी अर्थ

  • ۔ये वो बात नहीं। ये वैसा मुआमला नहीं।
  • ये वो मुआमला ना हो जिस तरह पहले किया था इस तरह ना हो
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English meaning of ye vo na ho

  • lest it not be that

یِہ وہ نَہ ہو کے اردو معانی

  • ۔یہ وہ بات نہیں۔ یہ ویسا معاملہ نہیں۔؎
  • یہ وہ معاملہ نہ ہو جس طرح پہلے کیا تھا اس طرح نہ ہو.

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